चिट्ठा जोरदार
ये पीला वासन्तिया चांद
आदर्शवादी उठान तथा पतिवादी पतन के बीच के दौर में हमने समय का सदुपयोग किया और वही किया जो प्रतीक्षारत पति करते हैं। कुछ बेहद खूबसूरत पत्र लिखे। जो बाद में प्रेम पत्र के नाम से बदनाम हुये। इतनी कोमल भावनायें हैं उनकी कि बाहरी हवा-पानी से बचा के सहेज के रखा है उन्हें। डर लगता है दुबारा पढ़ते हुये, कहीं भावुकता का दौरा ना पड जाये।
बिना मताधिकार के मोहरे
भारत जैसे जनतान्त्रिक देश में कोई मतदान का संवैधानिक अधिकार कितनी आसानी से खो सकता है, यह देख कर घिन्न होती है। एम्नेस्टी इंटरनेश्नल और ह्यूमन राइट्स वाच अब कहाँ हैं? शायद मैनहटन न्यूयार्क के किसी पैंटहाउस में स्काच की चुस्कियाँ लेने में व्यस्त होंगे। अपने यहाँ के राजनीतिज्ञ किस तरह गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं, यह देख कर ग्लानि होती है। जब सत्ता में होते हैं तब अपनी ही ऐंठ में होते हैं और जिन लोगों को हानि पहुंची है उन की वाजिब माँगों को भी नकार देते हैं। और जब हार कर विपक्ष में बैठते हैं, फिर मसीहा बने फिरते हैं।
भोंगा पुराण- (दो)
स्पीकर वो जो सुनाई ना दे, वो बस सुनाए! उसका काम संगीत को ज्यों का त्यों रखना है, अपने आप का कोई गुण प्रदर्शित करना नही है। आवाज ऐसे आए जैसे किसी पारदर्शी माध्यम से हो कर सीधे अपने मूल से आ रही है, रिकार्ड हुई पर गाने वाला या बजाने वाला यहीं है इतना सच्चा आभास हो सके।
ऐसा आफर रोज रोज नहीं मिलता!
फोन खटाक से रखे जाने की आवाज आती है। तय है कि काल टू ईंडिया कंपनी ने मुझे ब्लैक लिस्ट कर दिया होगा। इसके बाद इत्मीनान से बाकी बचा खाना खाया। टीवी पर चल रही पिक्चर का आधा मजा प्रीति जिंटा चौपट कर ही चुकी थी कि फिर से फोन बज गया। फोन उठाया तो पता चला एटीएंडटी वाले लाँग डिस्टेंस सर्विस बेचने की गुहार लगा रहे थे। सामने लगी श्रीकृष्ण जी की तस्वीर मुझसे कह रही थी कि हे महात्मा गाँधी के सच्चे अनुयायी! तेरी पिक्चर का बेड़ा गर्क कर ही दिया इन टेलीमार्केटर्स ने।
संकलनः जीतेन्द्र, अतुल तथा देबाशीष
उसने कहा
- कहते हैं कि जीवनसाथी और मोबाइल में यही समानता है कि लोग सोचते हैं — अगर कुछ दिन और इन्तजार कर लेते तो बेहतर मॉडल मिल जाता। (फ़ुरसतिया)
- कानपुर की गलियों में एलएमएल-वेस्पा चलाते चलाते एक दिन खुद को अटलांटा में एचओवी लेन में पाया। (अतुल)
- आपके कालीन देखेंगे फिर किसी दिन
आज तो पांव कीचड़ से सने हैं॥ (आशीष) - “अब आपके पास विकलप हैं, एक गाल भारतीय नक्सलवादियों को पेश कर दीजिये और दूसरा नेपाली नक्सलियों को। भगवान का शुक्र है कि हमारे पास दो ही गाल हैं।”( वर्नम)
- राष्टृ पर्वों पर लोगों का उपेक्षात्मक रवैया मुझे दुखी कर देता है। लोग इसे सोने ले लिए दी गई छुट्टी भर मानते है। या फिर बात जम जाए तो परिवार के साथ पिकनिक पर चले जाते हैं। संभवतः किसी को आगे बढ़ कर इसे किसी पूजा उत्सव का स्वरूप दे देना चाहिए, महाराष्टृ के गणेशोत्व या पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा जैसा। (इन्द्र शर्मा)
संकलनः रमन बी, जीतेन्द्र, अतुल तथा देबाशीष
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