प्रेमपीयूष
ये आये, लिखना शुरु किया और सबको भा गये। प्रख्यात कथाकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ के अंचल पूर्णिया (बिहार) मे जन्मे और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के साथ जन्मदिन (23 जनवरी) मनाने वाले प्रेमपीयूष होनहार छात्र रहे हैं। नवोदय विद्यालय से मेरिट छात्रवृत्ति पाकर, इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय नई दिल्ली से कम्पयूटर अप्लीकेशनस् में स्नातक (BCA) तथा परास्नातक (MCA) की उपाधि प्राप्त की। परास्नातक के दौरान मनोरोगियों तथा डाक्टरों (मनोचिकित्सकों) के लिये वेबसाइट विकसित की। संप्रति बिहार सरकार के वित्त विभाग के लिये साफ्टवेयर विकसित कर रहे हैं।
प्रेमपीयूष अपने बारे में बताते हुये कहते हैं:-
उन्हीं राहों के अनजान पथिक
जो साथ हँसते, गाते और रोते थे,
उनको खोने का दुःख तो होता है
फिर प्रेमवश सपनों मे मिल आता हूँ।
गाने तथा लिखने के शौकीन प्रेम प्रोग्रामिंग तथा मल्टीमीडिया सॉफ्टवेयर दोनों में सिद्धहस्त हैं। सहयोगी भावना से लबालब मन वाले प्रेम का मानना है
जब मै अकेला हो जाता हूँ,
तुम साथी बनकर आते हो।
जब अंधेरा छाने लगता है,
तुम दीपक एक जलाते हो।
प्रेम कहते हैं, “इधर कुछ महीनों पहले ब्लागिंग विधा भी सीख ली है। कभी नए-नए विचार दिमागी तंत्र को हिला देते है तो कभी आन-लाइन पढाई भी हो जाती है।” अनुगूंज मे “बचपन के मीत” विषय पर प्रेम का लेख मानो इनके किस्सा गोई विरासत में मिले होने की घोषणा करता है। स्वभाव से सहज तथा विनम्र माने जाने वाले प्रेम बालकविता में भी गति रखते हैं और मौका मिलने पर भांग की गोली खाकर सबको होली के रंग में सराबोर भी कर देते हैं।
मोहन खेले होली रे भैया, राधा खेले होली हो ।
ग्वाला खेले होली रे भैया, ग्वालिन खेले होली हो ।
ब्लागर खेले होली रे भैया, ब्लागिन खेले होली हो ।
हमहें खेले होली रे भैया, तुम्हें खेले होली हो ।
भारत दूरस्थ गावों में जाने के लिये लाखों डाक्टर पैदा नहीं किये जा सकते पर कंप्यूटर वहां पहुंच सकते हैं। भारत के गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतरी के लिये नेटवर्किंग सुविधा के उपयोग को अपना सपना मानने वाले प्रेम पीयूष की सफलता के लिये निरंतर की मंगलकामनायें। आशा है हम सभी प्रेम पीयूश के ब्लॉग रस से सदा सराबोर होते रहेंगे।
रविशंकर श्रीवास्तव
अगर किसी गजल के शेर चुराकर कहा जाये तो रविरतलामी के लिये कहा जा सकता
कितना मुश्किल है इनकी कहानी कहना,
जैसे बहते हुये पानी पर पानी लिखना।
लेख भी सौतन बनाने का काम करते हैं यह पता तब चला जब कि रविरतलामी का लेख पढ़कर चिट्ठाकारी में कूदे खिलाड़ी के परिवार के लोगों ने कहना शुरु किया, “ये ब्लॉग तो हमारे लिये सौत हो गये हैं – हमारे ये तो सारा समय ब्लॉग से ही उलझे रहते हैं।” लोगों की आहों ने असर किया तथा बहुत दिनों से सबसे बुजुर्ग ब्लॉगर की कुर्सी पर काबिज रवि को उनसे भी बुजुर्ग ब्लॉगरों ने आकर जवान बना दिया। पर फिलहाल हिंदी चिट्ठाकारी में सबसे ज्यादा शब्द लिखने का खिताब रतलाम, मध्य प्रदेश, निवासी 45 वर्षीय रविशंकर श्रीवास्तव (रवि रतलामी) के पास बरकरार है।
रवि विद्युत अभियांत्रिकी में स्नातक हैं। इन्हें म.प्र.राज्य विद्युत मंडल में 20 से अधिक वर्षों का तकनीकी तथा प्रबंधन का अनुभव है। सन् 2003 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले कर रवि भाई ने अपना पूरा समय हिन्दी लिनक्स के अनुवाद कार्य में लगा दिया।
रवि को हिन्दी साहित्य में छिटपुट लेखन का 20 वर्षों का अनुभव है। साहित्य के अलावा वे फीचर लेखन में सिद्धहस्त हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स फ़ॉर यू समूह, दिल्ली की पत्रिकाओं आई.टी तथा लिनक्स फ़ॉर यू में पिछले आठ वर्षों से वे तकनीकी लेखन करते आये हैं। आई.टी पत्रिका के तकनीकी लेखक पैनल तथा इंडलिनक्स हिन्दी टीम के सदस्य भी हैं। इसके अतिरिक्त रवि ने हिन्दी दैनिक चेतना में 2 वर्ष तक तकनीकी स्तम्भ में लेखन किया तथा संप्रति अभिव्यक्ति तथा प्रभासाक्षी में तकनीकी विषयों पर नियमित लिखते हैं।
रवि को तकनीकी दस्तावेज़ों के अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद का 4 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उनके किये गए अनुवाद कार्यों में केडीई 3.3 हेड ब्रान्चेस का हिन्दी अनुवाद (90 % से ज़्यादा), गनोम 2.8 का अधिकतर अनुवाद तथा 90% समीक्षा एवं पुनरीक्षण, एक्सएफ़सीई 4.2 का शत प्रतिशत हिन्दी अनुवाद, गेम 0.7 का 95 प्रतिशत हिन्दी अनुवाद तथा डेबियन संस्थापक का शत प्रतिशत हिन्दी अनुवाद सम्मिलित है।
पंगे लेने की पुरानी आदत है इनकी। जिनसे प्रेम किया उनसे विवाह भी करना पड़ा। जिजीविषा ऐसी कि मौत के कारिंदे सलाम करके लौट गये। इनकी चिट्ठाकारी की प्रवीणता और नियमितता इनका परिचय हैं और लगभग हर प्रविष्टि के साथ एक गज़ल उनका ट्रेडमार्क। रवि की चुटीली उक्तियाँ पड़ कर लगता है कि उत्तर भारत के किसी शहर की हवा मन को छूकर निकल गयी, वह हवा जिसमें गज़ल की खुशबू, जमीनी हकीकत, सामजिक पीड़ाओं के बीच भी हँस सकने की हिम्मत और नींद से झझकोर देने वाली अपील शामिल है।
सामयिक मुद्दो के साथ गजलों का मिश्रण एक अनूठा प्रयोग है। गजल भी गंगा जमुनी भाषा में, यानि हिंदी भी और उर्दू भी, “बोले तो फुलटुस हिन्दुस्तानी”। रवि आशु कवि है, विषय देते ही पद्य की धारा बहने लगती है। वे बिंदास लिखते हैं, खुद रवि मानते हैं-
मेरी ग़ज़लों को लेकर पाठकों की यदा कदा प्रतिक्रियाएँ प्राप्त होती रहती हैं. जो विशुद्ध पाठक होते हैं, वे इन्हें पसंद करते हैं चूंकि ये क्लिष्ठ नहीं होतीं, किसी फ़ॉर्मूले से आबद्ध नहीं होतीं तथा किसी उस्ताद की उस्तादी की कैंची से कंटी छंटी नहीं होतीं। वे सीधी, सपाट पर कुछ हद तक तल्ख़ होती हैं।
हिन्दी चिटठा विश्व की बात करें तो रवि काफी और नियमित रूप से लिखते हैं। आजकल रवि के चिट्ठे चित्रमय होने लगे हैं, अक्सर ये अखबार की कतरनों पर त्वरित टिप्पणीयाँ होती हैं। इन टिप्पणियों के साथ की गज़लें कई बार झकझोर देती हैं। लोग तथा खुद रवि यह तय नहीं कर पाये हैं कि ब्लॉग लिखने के लिये गज़ल लिखते हैं या गज़ल लिखने के लिये ब्लॉग। पर यह आम अफवाह है कि इनके पास कोई ऐसी मशीन है जरूर जो लगातार गज़लें पैदा करती रहती है। इनकी गज़लों में ऐसा कुछ नहीं है जिसकी पच्चीकारी पर लोग लौट-लौट कर फिदा हों पर यह साफ है कि रवि की गजलें उन पुलों की तरह हैं जो लोगों के दिलों को सामाजिक संवेदनाओं से जोड़ती हैं। जैसे कि यह-
ये उम्र और तारे तोड़ लाने की ख्वाहिशें
व्यवस्था ऐसी और परिवर्तन की ख्वाहिशें।
आदिम सोच की जंजीरों में जकड़े लोग
और जमाने के साथ दौड़ने की ख्वाहिशें।
तंगहाल घरों के लिए कोई विचार है नहीं
कमाल की हैं स्वर्णिम संसार की ख्वाहिशें।
कठिन दौर है ये नून तेल और लकड़ी का
भूलना होगा अपनी मुहब्बतों की ख्वाहिशें।
जला देंगे तुझे भी दंगों में एक दिन रवि
फ़िर पालता क्यूँ है भाई-चारे की ख्वाहिशें।
निरंतर पर रवि के व्यंग्य, समीक्षायें तो आप पढ़ते ही रहते हैं। रवि की लेखनी यूँ ही चलती रहे यही हमारी आशा है।
आलेख- अनूप शुक्ला, जीतेन्द्र चौधरी, अतुल अरोरा और देबाशीष
आपकी प्रतिक्रिया