नवीय फितरत का रूख तय नहीं होता। जैसे बयार रेगिस्तान के कैनवस पर सहसा उत्पन्न चित्र उकेरती है इंसानी मन भी नए रुप धरने और नयी राह की तलाश में रहता है सदा। अंतर्जाल पर मानवीय उपलब्धियों कि गाथा ऐसे ही बनी है। जड़ से गतिशील जाल पृष्ठों का सफर भी यों ही तय हुआ है। 5 वर्ष पहले जो जनाब अपनी पालतू बिल्ली और बागान में खिले एकाकी बटन गुलाब की तस्वीर बाज़ार से स्कैन करा अपने होमपेज पर तबियत से सजा कर मित्रों व परिचितों के डायल अप की कछुआ पदचाप अपने गेस्टबुक पर सुनना चाहते थे वो आज अपने ब्लॉग, मोब्लॉग1 (Moblog), आडब्लॉग और अब व्लॉग (Vlog) से दुनिया के सेंकड़ों लोगों से ब्रॉडबैन्डीय वार्तालाप करते थक जाते हैं।
बातचीत की इस चाह ने वैश्विक वार्तालाप और सोशियल नेटवर्किंग2 को जन्म दे दिया है। यूज़नेट, याहू ग्रुप्स, मैसेंजर, आर्कुट के बाद अब एक नया आंदोलन शुरु हुआ है, टैगिंग का। डिलिशियस और फ्लिकर के बाद अब हलचल मची है टेक्नोराती की बेहतरीन पहल के कारण, वह है टैग के आधार इन दोनों माध्यमों और ब्लॉग पर मिलीजुली खोज। जब आप टेक्नोराती पर किसी टैग की खोज करते हैं तो यह डिलिशियस, फर्ल तथा फ्लिकर से जानकारी ले कर मुहैया कराता है। और हर नये अन्वेषण पर अंतर्जाल में ब्लॉग चर्चाओं का प्रचलन काफी पुराना है, सो टैगिंग भी हर चिट्ठाकार की ज़बान पर है। और शुरुवाती संकेतों के आधार पर यह तो कहना पड़ेगा कि टैग हैं बड़े काम की चीज़ (ज़ाहिर बात है महोदय, वरना न हम ये आलेख लिखते और न आप यह पढ़ रहे होते)।
बात मुख़्तसर सी है…
हैरान न हों अगर मैं कहूँ कि आप न केवल टैगिंग के बारे में सदा से जानते थे बल्कि आपने उसका अनेकानेक बार प्रयोग भी किया है। अपने रसोईघर के डिब्बों पर नज़र डालें! वो जो लेबल आप देख रहे हैं आपकी माताजी और पत्नी इसका प्रयोग न जाने कब से कर रहे हैं। स्वयं अपने जॉब वेबसाईट पर अपने बायोडेटा के साथ अपने विशेष गुणों को दर्शाते कीवर्ड प्रविष्ट किये होंगे (आप अगर कुँवारे या कुँवारी हैं तो संभवतः ये हथकंडा आपने शादी डॉट कॉम नुमा साईटों पर अवश्य ही आजमाया होगा)। अगर आप ब्लॉगर पर ब्लॉगिंग करते हैं तो अपने प्रोफाईल पृष्ठ पर अपने शहर, प्रदेश, रुचियों को दर्शाते शब्दों पर गौर फरमायें (अगर आपका प्रोफाईल सार्वजनिक नहीं हैं तो यहाँ देखें)। सब के सब कड़ियों की शक्ल में तैनात हैं। कड़ी खड़खड़ाने की देर है कि दोस्ती का हाथ बढ़ाते सभी मिलते जुलते प्रोफाईल हाज़िर। अजी ज्यादा दूर क्या जाना! आपके नज़दीकी पुस्तकालय में किताबें भी तो श्रेणियों में जमीं हैं, ये लोग वर्षों से डेवी की डेसीमल वर्गीकरण पद्धति का प्रयोग कर रहे हैं। और तो और, कई चिट्ठों में चिट्ठे भी वर्गीकृत होते हैं।
मामला साफ है हुज़ुरे आला। यह सभी उदाहरण टैग के ही हैं। टैगिंग ऐसे अलाहदा रुपों में हमारे जीवन में हमेशा सम्मिलित रही है। एक तरह से देखा जाये तो टैग हाईपरलिंक या कड़ी की तरह ही हैं, पर यह हैं एक ऐसी खास कड़ी जो, गूगल खोज की तरह, खड़खड़ाते ही टैग के आधार पर मिलते जुलते तमाम चिटठा प्रविष्टियाँ खोज कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर दे। तो लीजिये समझ समझ के समझने के लिये एक समझदारी का काम करते हैं और लिखते हैं परिभाषा टैगिंग कीः
टैग एक विशेष कीवर्ड है जो किसी वर्ग या विषय का द्योतक है। जब जाल पर उपस्थित किसी दस्तावेज़ (जो कि अक्सर ब्लॉग प्रविष्टि होती है पर यह लेख, संगीत, चित्र, वीडियो कुछ भी हो सकता है) को किसी लेबल या लेबलों से चिन्हित कर दिया जाता है, जिससे लोग इस दस्तावेज़ को टैग द्वारा खोज सकें, तो इसे टैगिंग कहा जाता है। उद्देश्य यह कि टैग के सहारे विषय से सम्बद्ध दस्तावेज़ों की खोज आसान करना।
ये पब्लिक है, ये सब जानती है
आपको शायद अंदाज़ा होगा कि टैगिंग का इतना जोर शोर से क्यों ज़िक्र हो रहा है जाल पर। शायद इसलिये कि यह किसी आइंस्टीनी व्यक्ति या बड़ी कंपनी ने नहीं वरन् आम लोगों ने ईजाद किया है। टैग क्या होंगे, कितने होंगे, यह सब आप और हम ही तय करते हैं। जैसा कि वेबलॉग्सकी के रचयिता जॉन लेबकॉस्की कहते हैं,
"हालांकि टैगिंग का जन्म निजी वर्गीकरण या श्रेणियों के अनुसार सूचना को व्यवस्थित करने के झटपट माध्यम के रूप में हुआ पर डिलिशियस तथा फ्लिकर जैसे जालस्थलों पर जहाँ आपकी व्यक्तिगत वर्गीकरण योजना अन्य मेम्बरान देख सकते थे हम साझे वर्गीकरण का उद्भव देख रहे हैं। तो अब पेशेवर लोगों द्वारा तैयार कड़े वर्गीकरण के अलावा हमारे पास है सामुदायिक साझे ज्ञान पर आधारित तरल और लगातार विकसित हो रहा वर्गीकरण।"
देखा जाये तो टैगिंग कोई बहुत बड़ा तकनीकी आविष्कार भी नहीं है। आखिर ये है भी तो इंसान की एक सी चीज़ों इकठ्ठा करने की चाह को व्यक्त करने का एक तरीका। याद कीजिये आपके माचिस के लेबलों, गोलियों, चूड़ियों के टुकड़ों और बबल गम स्टिकरों के संग्रह। टैगिंग संभवतः इसी चाहत का डिजिटल रूप है।
समाज शास्त्री इस दृग्विषय को फोक्सोनॉमी पुकारने लगे हैं, ये है पब्लिक यानि सामान्य, गैर निपुण लोगों की वर्गीकरण पद्धति। कीवर्ड के सहारे कोलेबोरेटिव (सहयोगी ) वर्गीकरण या सामाजिक बुकमार्किंग का दूसरा नाम है फोक्सोनॉमी। फोक्सोनॉमी के कई रूप हैं, डिलिशियस और सिम्पी जैसे सामाजिक बुकमार्किंग जालस्थल, फ्लिकर जैसे फोटो साझा करने के स्थल, साझे लक्ष्य तय करने वाला जालस्थल 43 थिंग्स, समाचार साझा करने वाला आरएसएस एग्रीगेटर 24आईज़ आदि। फोक्सोनॉमी की खास बात है साझे काम से उपजता सामाजिक जुड़ाव। पर सिर्फ किसी वस्तु कि लेबल कर लेना भर टैगिंग नहीं है। मसलन, लेबल बनाने की सुविधा गूगल मेल में भी है पर ये फोक्सोनॉमी नहीं है क्योंकि ये लेबल सार्वजनिक नहीं होते हैं। मतलब यह है कि महज़ वर्गीकरण ही फोक्सोनॉमी नहीं है, वर्गीकरण साझा होना चाहिये। शायद प्राईवेट बुकमार्क्स भी इसी श्रेणी में आते हों।
एक दुनिया बिना नियमों की
ब्लॉगिंग की ही तरह टैगिंग के क्षेत्र में भी कोई स्थापित नियम नहीं हैं, जो हैं सो स्वयमेव बनते जा रहे हैं। ज़ाहिर है परम्परावादी आशंकित है कि इससे व्यवस्था में अराजकता न फैल जाये। पर वास्तविक परिणाम बता रहे हैं कि बिंदास लेबलिंग की इस अव्यवस्था से ही व्यवस्था पनप रही है। डिलिशियस पर प्रयोक्ता अपने पसंदीदा जालस्थलों को टैग करते हैं। आगंतुकों के लिये टैग आधारित खोज उन्हें किसी भी विषय से संबंधित जानकारियों और वार्तालापों से रूबरू कराती है, साथ ही वे यह भी जान सकते हैं कि समुदाय में कौन से जालस्थल ज्यादा लोकप्रिय हैं। फ्लिकर पर टैग चित्रों का वर्गीकरण करते हैं। एमेज़ॉन द्वारा प्रायोजित 43 थिंग्स पर लोग अपने लक्ष्य, संकल्प और योजनायें पोस्ट कर समान महत्वाकाक्षाओं के लोगों से मेल बढ़ा सकते हैं। नियम भले न हों पर अच्छे टैगर यह ध्यान रखते हैं कि टैग विषय को चिन्हित करने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त हों, अपने हर चित्र को यदि आप "फोटो" टैग दें तो उसे ढुंढना भूसे के ढेर में से सुई तलाशने जैसा ही होगा। टैग जितना सही होगा खोज उतनी ही परिशुद्ध होगी।
टैगिंग के बारे एक और आशंका जतायी जाती है इसके गलत प्रयोग के बारे में। किसी का इस्राईल, किसी और का फलस्तीन है, किसी का स्वतंत्रता संग्रामी किसी अन्य के लिये आतंकवादी हो सकता है। टैगिंग ऐसे मामलों मे गफलत पैदा कर सकते हैं। द वेबलॉग हैन्डबुक की लेखिका तथा जाल पर नीतिगत व्यवहार की वकालत करती रहीं रेबेका बल्ड के साथ हुए एक वाकये, जब मार्टिन लूथर किंग दिवस पर टेक्नोराती पर MLK टैग की खोज के दौरान उन्हें लूथर किंग पर आपत्तिजनक पोस्टर चित्र दिखा, के बाद से उन्हें लगता है कि टेक्नोराती जैसे जालस्थलों को इसका ध्यान रखना चाहिये। हालांकि पत्रकार और लेखक बेन हैमर्सले इसे समस्या नहीं मानते,
"वर्गीकरण का मतलब सहमति नहीं है। कोई अगर लूथर किंग से संबंधित जातिवादी दस्तावेज, जो शायद आपत्तिजनक हों, "मार्टिन लूथर किंग" नाम से टैग करता है तो यह गलत वर्गीकरण तो नहीं है। मैं भले यह पसंद न करूं पर संबंध नकार तो नहीं सकता। और मैं होता भी कौन हूँ कि दूसरों के वर्गीकरण सेंसर कर अपने राजनैतिक विचारों का ही प्रतिपादन करूँ?"
पर जिस तरह से टैगिंग की प्रसिद्घि बढ़ रही है क्या ये माध्यम भी स्पैमर्स से बचा रह पायेगा? किसी न किसी दिन तो ब्लॉग, सेक्स जैसे किसी मकबूल टैग पर आप क्लिक करेंगे और आप पर शरीर के अंगों को बढ़ाने की दवाओं की फेहरिस्त जबरिया थोप दी जायेगी। जॉन लेबकॉस्की इस बारे में कोई अनुमान लगाने को तैयार नहीं। "मैं उन्हें कोई आईडिया नहीं देना चाहता", वे स्पष्ट कहते हैं।
क्या टैगिंग दुनिया बदल देगी?
क्या ब्लॉगिंग ने बदल दी है दुनिया? दरअसल, ऐसे सवालों के जवाब देना दुष्कर है। अभी तो इसे परिपक्व होना है। रेबेका कहती हैं,
"टैगिंग एक रोचक विचार है पर दिक्कतें भी कम नहीं। सबसे बड़ी समस्या है अप्रत्याशित नतीजों की और यह कि टेक्नोराती असंगत और अपमानजनक वस्तुओं को छानने की जिम्मेवारी किस हद तक उठाने को तैयार है। मैंने तो शुरुवात में ही इस का प्रयोग करना बंद कर दिया क्योंकि यह काम ही नहीं करते थे। मूलतः टेक्नोराती मूवेबल टाईप ब्लॉग से श्रेणियाँ उठाकर प्रविष्टयों को टैग कर रहा था, मेरे विचार से कीवर्ड ज्यादा उचित होते इस काम के लिये। चुंकि मेरी साईट मैं स्वयं बनाती हूँ अतः मैं टैग भी यों ही डालती थी पर टेक्नोराती एक भी टैग पहचान नहीं पाया। इससे ऐसा लगता है कि यह सब बातें बस बढ़ा चढ़ा कर पेश की जा रही हैं। जब तक ये लोग तकनीकी समस्याओं से निजात नहीं पा लेते, कुछ सॉफ्टवेयर निर्माताओं के अलावा शायद ही कोई इनका प्रयोग करे।"
तो क्या ब्लॉग की श्रेणियाँ टैग नहीं हो सकतीं? रेबेका जैसे कई कहते हैं नहीं, क्योंकि प्रथम तो ब्लॉग की श्रेणियाँ ही ज्यादा नहीं होतीं और ज्यादातर हर ब्लॉग पर एक जैसी ही होती हैं, जैसे राजनीति, संगीत या तकनालाजी। दूजे ये बड़े ही व्यापक शब्द हैं और खोज में खास सहायता कर पायेंगे ऐसा लगता तो नहीं है।
बहरहाल, आप टेगिंग पसंद करें या नापसंद इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। बेन का भी यही विचार है,
"मेरा ख्याल है कि टैगिंग काफी गंभीर और बड़ी खोज है। वर्गीकरण हमेशा से टेड़ी खीर रही है। जब ढेर सारी चीजें वर्गीकृत करनी हों तो सामान्य पद्धतियां असक्षम हो जाती हैं। अंतर्जाल जैसे आकार के लिये किसी पद्धति में दरकार सारे गुण टैगिंग में हैं। हालांकि यह अभी पूर्णतः परिपक्व नहीं हुआ है पर इसके आधार पर कई रोचक एप्पलीकेशन्स बन सकते हैं।"
तो हो सकता है कि कुछ सालों में अपने कंप्युटर पर आप फोल्डरों में जानकारी रखने की बजाए उन्हें टैग करें और डेस्कटॉप पर फोल्डरों के शार्टकट की जगह हों टैग की कड़ियाँ। हर पल बदलते अंतर्जाल के असर क्या रंग लायें क्या पता। मेरा कहा माने जनाब! टैगिंग से दोस्ती बनाये रखने में ही समझदारी है। ठीक कहा न ललिता जी?
- मोब्लॉग, आडब्लॉग और व्लॉग क्रमशः मोबाईल ब्लॉग (मोबाईल फोन से ब्लॉगिंग करने की सुविधा युक्त), आडियो ब्लॉग (जिसमें ब्लॉग प्रविष्टि छोटी आडियो फाइल के रुप में होती है, जिसे आप सुन सकते हैं), तथा विडियो ब्लॉग (जिसमें ब्लॉग प्रविष्टि व्हिडियो फाइल के रुप में होती है, जिसे आप सिनेमा क्लिप की तरह देख सकते हैं) के लिये सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले संक्षिप्त रुप हैं।
- सोशियल नेटवर्क ब्लॉग्स के लिये प्रयुक्त होने वाला वैकल्पिक शब्द है। ब्लॉग अंतर्जाल पर विचारों को महामारी के रूप में व्यापक करने वाले सामाजिक औजार हैं। ये लेखकों की व्यक्तिगत शैलीयों से जुड़े संवाद के माध्यम हैं जो समान रुचियों वाले लोगों और समूहों के मध्य डिजिटल बातचीत कराते हैं।
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