रिंदम चौधरी समकालीन भारत के नामचीन मैनेजमेंट गुरुओं में से एक माने जाने लगे हैं और यह उपलब्धि उन्होंने बहुत ही कम समय में, अपने जीवन के तीसरे दशक की शुरूआत में ही, अर्जित कर ली है। उनकी प्रबंधन कार्यशाला में नामचीन हस्तियाँ सम्मिलित होकर गर्व का अनुभव करती हैं। दावा किया जाता है कि कई अखबारों में और कई भाषाओं में एक साथ छपने वाले उनका मासिक कॉलम भारत में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला और सबसे ज्यादा पाठकों की प्रतिक्रिया प्राप्त करने वाला स्तम्भ है। और क्यों न हो, जब अख़बार के एक स्तम्भ को एक मैनेजमेंट गुरु; विज्ञापन के रूप में, अपनी शैली और अपने विन्यास से छपवाएँगे, तो पाठक तो आएंगे ही पढ़ने और अपनी प्रतिक्रिया देने। अब आप उन्हें “रोक सको तो रोक लो” (वैसे यह अरिंदम द्वारा निर्देशित एक फ़्लाप फ़िल्म का नाम है जिसके बारे में यह चर्चित किया गया कि यह शोध करके बनायी गई हे जिसमें सफलता के सारे मसाले मौजूद हैं!)। खैर, यह आलेख उनके एडवरटोरियल लेखों और फिल्मी फितूर के बारे में नहीं हैं, इसलिये लौटते हैं विषय पर।
“ख़ुदी को कर बुलंद इतना…” अरिंदम चौधरी की मूल अँग्रेज़ी पुस्तक “काउंट योर चिकेंस बिफ़ोर दे हैच” का हिन्दी में अनुवाद है और इसका अनुवाद किया है प्रणीता सिंह ने। एक नज़र में ही यह पता चल जाता है कि किताब अँग्रेज़ी से सीधा-सपाट अनूदित है, और चूंकि अँग्रेज़ी की अपनी अलग तरह की सम्प्रेषणीयता होती है, लिहाज़ा हिन्दी में थोड़ी अधूरी और ऊटपटाँग सी महसूस होती है। एक उदाहरण देखिए
“आप जो कुछ भी करेंगे आपको वह नगण्य लगेगा लेकिन आपका वह करना महत्वपूर्ण है…….”
अपनी किताब में अरिंदम घुमा-फिरा कर वही बात कहते हैं जो अन्य प्रबंधन गुरु कह चुके हैं या ऐसी प्रेरणास्पद किताबों में पहले ही कही जा चुकी हैं – अपना काम जुनून से करें, व्यवस्थित करें, प्रसन्न होकर करें, असफलता में निराश न हों, असफलता ही सफलता की प्रथम सीढ़ी है आदि, इत्यादि। अपनी बातों पर बल देने के लिए वे सफल व्यक्तियों – विवेकानंद से लेकर विद्यासागर तक और डॉन ब्रैडमेन से लेकर धीरूभाई अंबानी तक के उदाहरण देते हैं। हाँ, पुस्तक में वे अपनी सफलता की कहानी भी अपने जीवन के अनुभवों-घटनाओं से लेकर बताते हैं – और पाठकों को वे दिलचस्प भी लगती हैं – क्योंकि अरिंदम चौधरी अब प्रसिद्ध, सफल जो हो चुके हैं।
पुस्तक को चित्रों और उद्धरणों के द्वारा दिलचस्प बनाने का सफल प्रयास किया गया है, जिससे पुस्तक उबाऊ और बोझिल होने से बच जाती है। एक बढ़िया उद्धरण देखें-
“जब कोई रास्ता नहीं सूझता, [तो] मैं पत्थर तोड़ने वाले को हथौड़े से पत्थर पर प्रहार करते देखता हूँ। वह सौ बार प्रहार करता है पर पत्थर पर दरार भी नहीं पड़ती। फिर एक सौ एकवें प्रहार पर उसके दो टुकड़े हो जाते हैं। मैं जानता हूँ कि यह एक सौ एकवें प्रहार के कारण नहीं बल्कि उससे पहले किए गए प्रहारों का परिणाम है”
कुल मिलाकर, यह पुस्तक आपको इतना ज्ञान तो देती ही है कि अगर दिल से, लगन से प्रयास किए जाएँ तो सफलता के रास्ते खुलते चले जाते हैं। परंतु क्या यह बात आपको पहले से नहीं पता थी?
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