ड्स से बचाव की बात करने से पहले इस बात पर एक और नज़र डाली जाए कि यह बीमारी फैलती कैसे है। एड्स के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं – यौन द्वारा, रक्त द्वारा, माँ-शिशु संक्रमण द्वारा। अब करते हैं बचाव की बात।
यौन द्वारा संक्रमण से बचाव
आप यौन द्वारा एचआइवी के शिकार न बनें, इस के लिए आप को इन बातों का ध्यान रखना होगा।
- यदि आप अविवाहित हैं या आप का कोई स्थाई और विश्वसनीय यौन संगी नहीं है तो सेक्स को जितना हो सके, जब तक हो सके, टालना बेहतर है।
- सेक्स साथियों में बदलाव न करें तो बेहतर है। एक वफ़ादार साथी से नाता रखें और उस से वफ़ा करें, यानी उसी से सेक्स करें।
- यदि आप के पास अपने या अपने साथी के एचआइवी रहित होने का सौ प्रतिशत प्रमाण नहीं है तो सेक्स के समय कंडोम (जैसे निरोध, कोहिनूर, आदि) का प्रयोग करें – नियमित रूप से और सही विधि से।
बाज़ार में पुरुषों के प्रयोग हेतु कंडोम मिलते हैं, और स्त्रियों के प्रयोग हेतु भी। पुरुषों वाले कंडोम अधिक प्रचलित भी हैं और अधिक उपलब्ध भी — इस कारण यहाँ हम उन्हीं की बात करेंगे। यदि आप को इस बात की संभावना लगती है कि आप का किसी से यौन संबन्ध होने की संभावना है तो अपने पास कंडोम अवश्य रखें। किसी से सेक्स के लिए राज़ी होने से पहले उसे कंडोम प्रयोग के लिए राज़ी कर लें। कंडोम प्रयोग करते समय इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है
- पैकेट खोलते समय ध्यान से खोलें। आप के नाखून से कंडोम में छेद हो सकता है। छेद वाला कंडोम प्रयोग करना कंडोम प्रयोग न करने के बराबर है।
- कंडोम को शिश्न पर चढ़ाने से पूर्व उसे पूरा न खोलें। उस का आगे का सिरा दबाएँ ताकि उस में हवा न फंसी रहे, उस के बाद उसे शिश्न पर चढ़ाते हुए पूरी तरह खोलें। कुछ चित्र यहाँ देखें
- यौन क्रिया पूरी होने पर शिश्न की अनुत्तेजित स्थिति आने से पहले ही कंडोम को सावधानी से उतारें, और सावधानी से फेंकें, ताकि द्रव्य इधर उधर न गिरे और किसी के संपर्क में न आए। कंडोम को कभी भी पुनः प्रयोग न करें।
रक्त द्वारा संक्रमण से बचाव
रक्तदान के समय एड्स का संक्रमण न हो इस के लिए रक्तदाता के खून की जाँच होना आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि रक्त लेने और देने के लिए जिन सूइयों का प्रयोग हो रहा है, वे नई हों और अप्रयुक्त हों। चूँकि रक्त-आधान अस्पतालों या प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा ही किया जाता है, आज के युग में रक्तदान के द्वारा असावधानी होने पर एचआइवी का संक्रमण होने की संभावना कम है — ऐसा हो तो घोर अपराध ही कहा जाएगा।
रक्त द्वारा संक्रमण होने की अधिक संभावना तब रहती है जब रोगी, या उस के साथी स्वयं गलत तरीके से सूइयों का प्रयोग करते हैं और उन की अदला बदली करते हैं। आम तौर पर ऐसा तब होता है जब इंजेक्शन द्वारा नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले जूठी सूइयों का प्रयोग करते हैं। स्वास्थ्य कर्मचारियों, जो कई रोगियों के बीच काम करते हैं, के लिए भी रक्त द्वारा रोग संक्रमण का खतरा बना रहता है। यदि आप स्वयं को या दूसरों को इंजेक्शन द्वारा दवाइयाँ दे रहे हैं तो इन बातों का ध्यान रखें
- हर बार नई, अप्रयुक्त या संक्रमण रहित सूई का प्रयोग करें।
- एक व्यक्ति पर प्रयोग की गई सूई दूसरे व्यक्ति पर प्रयोग न करें।
- इंजेक्शन करते समय संपर्क संबन्धी सावधानियाँ बरतें, जैसे फेंके जाने वाले दस्ताने पहनना, इंजेक्शन से पहले और बाद में साबुन और पानी से हाथ धोना, आदि।
माँ-शिशु संक्रमण से बचाव
यदि एक एच॰आइ॰वी॰ युक्त स्त्री गर्भवती हो जाती है तो नवजात शिशु के संक्रमित होने की संभावना काफी बढ़ जाती है — यह संक्रमण गर्भ, प्रसव या स्तनपान द्वारा हो सकता है। एचआइवी युक्त स्त्रियाँ एचआइवी युक्त शिशुओं को न जनें, इस के लिए इन बातों का ध्यान रखना होगा।
- अवांछित गर्भ को टाला जाए, जिस के लिए कंडोम और अन्य गर्भ निरोधक साधनों का प्रयोग किया जा सकता है।
- गर्भ और प्रसव के दौरान माता को एंटीरेट्रोवाइरल दवाइयाँ दी जाएँ, जिस से शिशु के संक्रमित होने का खतरा कम हो जाता है।
- यदि अन्य हालात इजाज़त दें ते शिशु का जन्म सी-सेक्शन द्वारा कराया जाए। इस से माता के द्रव्यों से बच्चे का संपर्क कम हो जाता है और संक्रमण का खतरा भी।
- यदि अन्य स्वीकार्य विकल्प उपलब्ध हों, तो शिशु को स्तनपान न कराया जाए।
जानकारी ही बचाव है!
एड्स है क्या?
एड्स शब्द बना है एक्वार्यड इम्यूनो डेफिशियेन्सी सिन्ड्रोम से और इसका कारण होता है एक अतिसूक्ष्म कीटाणू ह्यूमन इम्यूनोडेफीशीयेन्सी सिन्ड्रोम यानि एचआईवी। एड्स स्वयं कोई बीमारी नही है पर एड्स से पीड़ित मानव शरीर संक्रामक बीमारियों, जो कि बैक्टीरिया और वायरस आदि से होती हैं, के प्रति अपनी प्राकृतिक प्रतिरोधी शक्ति खो बैठता है क्योंकि एचआईवी रक्त में मौजूद प्रतिरोधी पदार्थ लिफ्मोसाईट्स पर हमला करता है। एड्स पीड़ित के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर टी.बी. जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं।
क्या एड्स का इलाज संभव है ?
ऐसी दवाईयाँ अब उपलब्ध हैं जिन्हें ए.आर.टी यानि एंटी रेट्रोवाईरल थेरपी दवाईयों के नाम से जाना जाता है। सिपला की ट्रायोम्यून जैसी यह दवाईयाँ महँगी हैं, प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 15000 रुपये होता है, और ये हर जगह आसानी से भी नहीं मिलती। इनके सेवन से बीमारी थम जाती है पर समाप्त नहीं होती। अगर इन दवाओं को लेना रोक दिया जाये तो बीमारी फ़िर से बढ़ जाती है, इसलिए एक बार बीमारी होने के बाद इन्हें जीवन भर लेना पड़ता है। अगर दवा न ली जायें तो बीमारी के लक्षण बढ़ते जाते हैं और एड्स से ग्रस्त व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।
एक अच्छी खबर यह है कि सिपला और हेटेरो जैसे प्रमुख भारतीय दवा निर्माता एचआईवी पीड़ितों के लिये शीघ्र ही पहली थ्री इन वन मिश्रित फिक्स्ड डोज़ गोलियाँ बनाने जा रहे हैं जो इलाज आसान बना सकेगा (सिपला इसे वाईराडे के नाम से पुकारेगा)। इन्हें यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से भी मंजूरी मिल गई है। इन दवाईयों पर प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 1 लाख रुपये होगा, संबल यही है कि वैश्विक कीमत से यह 80-85 प्रतिशत सस्ती होंगी।
एड्स कैसे फैलता है ?
एचआईवी केवल एक मानव से दूसरे मानव को फैल सकती है। पीड़ित व्यक्ति के शरीर के सभी द्रव्यों जैसे रक्त, स्तनदुग्ध, वीर्य, आदि में फैल जाता है। कोई अन्य व्यक्ति अगर इन द्वव्यों के संपर्क में आता है तो यह वायरस उसके शरीर में प्रवेश कर सकता है। यह वायरस स्वस्थ त्वचा को पार नहीं कर सकता इसलिए बाहरी शरीर से संपर्क में आने पर इससे कुछ खतरा नहीं होता। इसके फैलने का सबसे आसान तरीका है यौन संपर्क। इसके अतिरिक्त संक्रमित व्यक्ति का रक्त किसी और को देने से, संक्रमित सुई या सिरिंज का इस्तेमाल करने से और संक्रमित माँ के दूध से उसके बच्चों में भी फैल सकता है।
एड्स के लक्षण क्या हैं ?
एचआईवी शरीर में प्रवेश के बाद धीरे धीरे फैलना शुरु करता है। जब वायरस की मात्रा शरीर में बहुत बढ़ जाती है, उस समय बीमारी के लक्षण प्रकट होते हैं। एड्स के लक्षण प्रकट होने में आठ से दस साल या अधिक भी लग सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को, जिसके शरीर में एड्स का वायरस हों पर एड्स के लक्षण प्रकट न हुए हों, एचआईवी पॉसिटिव यानि एचआईवी वायरस सहिक कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति भी एड्स फैला सकते हैं।
एड्स के लक्षण बहुत विभिन्न तरह के हो सकते हें, क्योंकि शरीर में कीटाणुओं से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है, इसलिए विभिन्न संक्रामक बीमारियाँ हो सकती हैं, हर संक्रामक बीमारी के अपने लक्षण होते हैं। एड्स के प्रमुख लक्षण हैं वजन में 10 प्रतिशत से अधिक की कमी और एक माह से ज़्यादा से चल रहा बुखार या डायरिया। अप्रधान संकेतों में एक महीने से ज्यादा लगातार चल रही खाँसी, खुजली वाली त्वचा की बीमारियाँ, बार बार होती दाद, मुँह और गले में छाले आदि शामिल हैं। एचआईवी की उपस्थिति का पता लगाने हेतु मुख्यतः एंज़ाइम लिंक्ड इम्यूनोएब्ज़ॉर्बेंट एसेस यानि एलिसा टेस्ट किया जाता है।
किसको एड्स का खतरा अधिक है?
खतरा सभी को है पर किशोरवयः व नौजवान लोगों को खतरा अधिक है क्योंकि आम तौर पर इस उम्र में यौन और नशीले पदार्थों जैसे नये अनुभवों की तलाश अधिक रहती है। युवाओं में एक अन्य वर्ग है जिनको एड्स का खतरा अधिक है, वह है यौन कर्मियों का, यानि वे लोग जो वेश्यावृत्ति से जुड़े हैं। अनुमानतः भारत में करीब 20 लाख यौनकर्मी हैं जिनमें से 20 प्रतिशत 15 वर्ष से कम आयु के हैं और 50 प्रतिशत 18 वर्ष से भी कम आयु के हैं।
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