ड़नतश्तरी के लेखक समीर लाल की सक्रियता देखकर यह विश्वास करना मुश्किल लगता है कि उन्होंने गये साल ही लिखना शुरू किया। हलके-फुल्के अंदाज़ में गहरी बात कह जाने वाले समीरजी अपनी बात कहने के नये-नये दिलकश अंदाज़ खोजते रहते हैं। चाहे वह गीता का सार हो या कबीर के दोहे, आधुनिक परिस्थितियों से जोड़कर वे बेहतरीन लेख लिखते रहते हैं। कुंडलिया किंग समीर ने चिट्ठाजगत को कुंडलिया से परिचित कराया और फिर धीरे से उसका पेटेंट मुंडलिया के नाम से करा लिया। पंकज के लालाजी का ज्ञान का प्रकाश ही था जिससे चकाचौंध होकर गिरिराज जोशी उनका शिष्यत्व ग्रहण करने के लिये बेताब हुये।
मूलत: पूर्वी उत्तरप्रदेश (गोरखपुर) के वासी समीर की पैदाइश रतलाम की और ज्यादातर रिहाइश मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर की है। आज के लोकप्रिय चिट्ठाकार समीरलाल में लेखन के कीटाणु बचपन से ही थे। उन दिनों को याद करते हुये समीरजी बताते हैं, “एक बार बचपन में कहानी लिखना शुरु किया था जब क्लास पाँचवीं में था शायद। जबलपुर से प्रकाशित “ज्योतिर्मिलन” मासिक के बाल विषेशांक में कहानियां प्रकाशित हुई और बाल साहित्यकार का पुरस्कार मिला जिसे घोषणा के तीन वर्ष उपरान्त प्रख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के हाथों प्राप्त किया।” स्कूल के दिनों में परसाई के हाथों पुरस्कार के रूप में प्राप्त पुस्तक आज भी उनके लिये बहुमूल्य धरोहर है।
लेकिन स्कूल के दिनों के बाद शायद जीवन संघर्षों के कारण लिखना स्थगित रहा। इस बारे में समीरजी कहते हैं, “फिर कभी नहीं लिखा, बस आम युवकों की तरह कॉलेज की कापियों के आखिरी पन्नों पर कुछ शेरो शायरी और कवितायें लिखीं। पिछले एक वर्ष से नियमित लेख कवितायें, व्यंग्य की ओर पुनः रुझान हुआ जो चिट्ठों के माध्यम से गति प्राप्त करता गया और वही ऊड़न तश्तरी, ई-कविता और अनुभूति याहू ग्रुप के माध्यम से सबके सामने है।” आचार्य रजनीश को सुनने के शौकीन समीर को किताबें पढ़ने, पेंसिल-स्केचिंग करने और शास्त्रीय संगीत सुनने का भी शौक है। अंग्रेजी कवि राबर्ट फ्रॉस्ट इनके पसंदीदा कवि हैं जिनकी कई कविताऒं का आपने भावानुवाद भी किया है।
लेखन के अलावा कालेज के दिनों में अपने तमाम इतर अनुभवों की दास्तान बताते हुये समीर कहते हैं, “सी.ए. करने के दौरान बम्बई की छात्र राजनिति में सक्रिय रहा, हॉस्टल एसोसियेशन और छात्र संघ के महामंत्री, फिर बाद में, काँग्रेस में सक्रिय भूमिका रही। मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के औद्योगिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष, कमलनाथ जी के संयोजन में म.प्र. जनजागरण मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री, जबलपुर चार्टड एकाउन्टेन्ट एसोसियेशन के उपाध्यक्ष, जबलपुर चेम्बर ऑफ कामर्स के ट्रेज़रार और उपाध्यक्ष भी रहा। इस दौरान कई अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय रोजगार मेलों का जबलपुर में आयोजन किया। राजनेताओं से संपर्क रखने का तब बहुत शौक था और साथ ही आचार्य रजनीश, महेश योगी, शंकराचार्य स्वरुपानन्द जी और स्वामी प्रज्ञानन्द जी आदि से व्यक्तिगत परिचय और उनकी विभिन्न संस्थाओं का ऑडिटर और सलाहकारी भी रहा।”
समीरलाल चिट्ठाचर्चा में नियमित लिखते हैं, और जिस दिन ये लिखें उस दिन इस चिट्ठे के हिट्स की संख्या हनुमान की पूँछ बन जाती है। टिप्पणी करने के मामले में समीर बेहद उदार हैं, लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि अक्सर नोटिस बोर्ड के नीचे भी जगह खाली होने पर समीरजी लिख देते हैं, “अच्छा लिखा है। लिखते रहें।” आजकल कवि सम्मेलनों में भी शिरकत करने वाले समीरलाल जी अपनी जमाऊ कविताऒं से अपना रंग जमाने लगे हैं और श्रोताऒं के बीच वे लोकप्रिय कवि हो गये हैं। पिछ्ले एक वर्ष में ही बफैलो, वाशिंगटन में कवि सम्मेलन और जबलपुर में कुछ काव्य गोष्ठियां और एकल काव्य पाठ का उन्हें मौका मिला।
समीरलालजी बम्बई से सी.ए. कर वापस गृहनगर जबलपुर में प्रैक्टिस करने लगे। 1999 में वे कनाडा आ गये, दोनों बेटों को १२वीं तक भारत में ही पढ़ाया ताकि वो अपनी संस्कृति को समझ सकें और उससे जुड़ सकें, दोनों अब कम्प्यूटर इंजीनियर हैं। खुद कनाडा आकर शेयर बजार के कोर्स कर पहले स्टाक एक्सचेंज पर यहां की एक बड़ी बैंक के लिये ट्रेडर रहे। न जाने कब तकनीक की तरफ रुझान हो गया। सब कुछ इन्टरनेट से ही सीखा, फिर माईक्रोसॉफ्ट एक्सेल एक्सपर्ट, एक्सेस एक्सपर्ट आदि के रास्ते चलते हुये आऊटलुक प्रोग्रामिंग में महारत हासिल की। अब विज़ुअल बेसिक डॉटनेट में सिद्धता के दम पर उसी बैंक में बतौर तकनीकी सलाहकार कार्यरत हैं। इसी बीच अमेरिका से ही अकाउंटिंग से संबंधित सी.एम.ए और प्रोजेक्ट मेनेंजमेंट में पीएमपी पूरण किया। संप्रति बैंक की विभिन्न मेन्यूल कार्यप्रणाली को आटोमेट करने के कार्य में सलाहकार हैं। स्पष्टतः समीर में लगातर नया ज्ञान, नया विज्ञान सीखने की ललक हैं।
मार्च 2006 में समीरलाल ने ब्लॉग लेखन की शुरुआत की और देखते ही देखते लोकप्रिय हो गये हैं। कविता, कुंडलियाँ, त्रिवेणी और मुंडलिया, सबमें इनकी सहज गति है। सहज, मनलुभावन गद्य इनके लेखन का प्राणतत्व हैं। मजाक करो तो मजाक सहने का माद्दा भी रखो का सिद्धांत मानने वाले समीर हास्य व्यंग्य के महारथी हैं लेकिन किसी का भी दिल दुखाना इनकी फितरत में नहीं है। एकाध बार तो अपनी पोस्ट तक यह सोचकर हटा ली कि किसी का दिल न दुखे। लेखन से मजाकिया और बिंदास से लगने वाले समीर को “लेखन शैली के विपरीत और व्यवसायिक मजबूरियों के अलावा स्वाभाव से शांत और गंभीर रहना पसंद है।” अपने स्वभाव के एक और पहलू का खुलासा करते हुये कहते है: “गुस्सा बहुत मुश्किल से ही आता है।” हिंदी चिट्ठाकारी को संभावनाशील मानने वाले समीरजी का विचार आगे चलकर भारत में ही बसने का है। फिलहाल भारत में कुछ ट्रस्टों से जुडे़ हैं।
ब्लॉग लेखन में पत्नी के सहयोग का जिक्र करते हुये समीरजी खुलासा करते हैं, “पत्नी का योगदान ही है कि पूर्ण खाली समय ब्लॉग और लेखन को देने का बिल्कुल बुरा नहीं मानना, तभी इतना समय देना संभव हो पाता है। बाज़ार से लेकर घर के सारे खुद ही कर लेती है। गायन में उनकी काफी रुचि है जो रियाज़ के अभाव में लगभग छूटा हुआ है। किताबें पढ़ने का शौक है मगर एम.ए. हिन्दी में होने के बावजूद भी लेखन में रुझान नहीं। उनका मानना है कि अगर दोनों ही यह करने लगे, तो घर चल चुका। बात तो पते की है, इसलिये हम इसे तुरंत मान लेते हैं।”
चार पांच घंटे से ज्यादा सोने को समय की बरबादी मानने वाले समीर ब्लॉग लेखन के अलावा तरकश की कोर टीम के सदस्य भी हैं। इसके अलावा अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिन्दी नेस्ट, साहित्यकुंज, मुक्तक सागर पर रचनायें प्रकाशित हुई हैं। एक्सेल पर अंग्रेजी में ब्लॉग टेक नोट एक्सचेन्ज और वीबी डॉट नेट पर कई ऑनलाईन पत्रिकाओं में अनेकों लेख भी प्रकाशित। समीर टाईम्स के नाम से सन 2000 में एक वेबसाईट शुरु की जो कि आज भी सुचारु रुप से चल रही है। बस मौज मजे के लिये मगर हिट्स ठीक ठाक मिल जाती हैं।
बहुप्रतिभाशाली समीर को निरंतर लिखते रहने और आगे प्रगति करते रहने के लिये निरंतर टीम की हार्दिक शुभकामनायें।
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