निरंतरः अतानु, इंडीब्लॉगीज़ में सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग का पुरस्कार जीतने का अनुभव कैसा रहा? क्या इस तरह के पुरस्कार जालस्थल ब्लॉगमंडल का कुछ भला करने वाले हैं?
अतानुः काफी सकारात्मक अनुभव रहा है, इस आयोजन से मैं जिन विचारों की खोज अपने ब्लॉग पर करता रहता हूँ उनको विस्तार मिला। ये इस आयोजन का अमुख्य असर था। उदाहरण के लिएः यूसी बर्कले में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक ब्रैड डेलॉन्ग ने अपने ब्लॉग पर इस अवार्ड की चर्चा की और मेरे अपने चिट्ठे पर सेंकड़ों अतिरिक्त आगंतुक आने लगे। टिम वर्स्टआल तथा ओम मलिक भी उन चिट्ठाकारों में शामिल थे जिन्होंने मेरे ब्लॉग के बारे में लिखा जिससे मेरे चिट्ठे की पाठक संख्या बढ़ी।
मेरा विश्वास है कि इस तरह की प्रतियोगिताओं से एक उद्देश्यपूर्ति तो होती है, ये जानकारी के दोषों को कम करती हैं। यानि कि ज्यादा लोगों को अच्छे चिट्ठों के बारे में पता चलता है जिससे प्रतियोगिता और भी कड़ी हो जाती है।
निरंतरः क्या आपको यह लगता है कि ब्लॉगिंग जो आप कहते हैं उसके लिए एक अच्छा मंच है? क्या आप किसी उद्देश्य के साथ ब्लॉगिंग करते हैं?
अतानुः ब्लॉगिंग एक व्यक्ति का दृष्टिकोण संसार को (कम से कम, वह संसार जो अंर्तजाल से जुड़ा है) उपलब्ध कराने का बढ़िया मंच है। हममें से हर एक का संसार के प्रति एक अनोखा रुख होता है जो कि ऐसे लोगों के लिए मूल्यवान हो सकता है जो भले ही भौतिक रूप से दूर हों पर अतींद्रिय रूप से नज़दीक हों। वेबलॉग अलाहदा जगह स्थित सजातीय आत्माओं (किन्ड्रेड स्पिरिट्स) को संपर्क का मौका देता है।
निश्चित ही मैं इन्हीं कारणों से ब्लॉगिंग करता हूँ। पर इससे भी ज्यादा ज़रूरी कारण है कि यह मुझे लिखने को विवश करता है। मेरे लिए, लिखना आत्म अन्वेषण की एक प्रक्रिया है। जब मैं लिखता हुँ तो स्वयं अपने लिए ऐसी चीजों को स्पष्ट करता हूँ जिन्हें मैं अंतर्निहित रूप से जानता हूँ पर जिनके विषय में संभवतः पूर्ण रूप से सचेत नहीं हूँ।
निरंतरः आप के ब्लॉग दिशा कि उपलब्धि क्या है?
अतानुः दिशा की उपलब्धि है संपर्क (कनेक्शन्स)। इस ब्लॉग का मूल उद्देश्य हैः चर्चा, अनुभव, अवलोकन तथा आत्मविश्लेषण द्वारा यह खोज करना कि भारत क्या है और किस दिशा में जा रहा है। दिशा मेरे प्रयासों को ऐसी ही खोज में जुटे दुसरे व्यक्तियों से जोड़ती है।
निरंतरः आपके पसंदीदा ब्लॉग कौन से हैं?
अतानुः मैं उन लोगों में शुमार नहीं जो सेंकड़ों ब्लॉग पढ़ते हैं। दूसरों का लेखन सावधानीपूर्वक समझने में मुझे समय लगता है। अतः मेरा पढ़ना, चयनशील सही, काफी हद तक सीमित है। ज़्यादातर में उन लोगों के चिट्ठे पढ़ता हूँ जिन्हें मै सीधे तौर पर या अंतर्जाल के माध्यम से जानता हूँ।
राजेश जैन का इमरजिक मेरा मनपसंद तकनीकी ब्लॉग है। ग्रामीण भारत की ख़बरों और नज़रिये के लिए सुहित अनंतुला की वर्ल्ड इज़ ग्रीन पढ़ता हूँ। मेरी पसंद का समूह ब्लॉग है, रूबन अब्राहम द्वारा शुरु की गई वेटवेयर। वीरचंद बोथरा की मोबाईल पंडित मोबाईल संबंधित सामग्री का बढ़िया स्रोत है। ब्रैड डेलॉन्ग मेरे पसंदीदा प्राध्यापकों में से एक हैं और उनका एक जबरदस्त राजनैतिक और आर्थिक ब्लॉग है। यूके के टिम वर्स्टआल का “इट इज़ आल ट्रिवियल एंड आववीयस एकसेप्ट…” एक और चयनशील और चतुर दृष्टिकोण है जो मुझे उल्लेखनीय लगता है। न्यूयॉर्क से सोनल वैद्य “अ पॉटपौरी आफ थॉट्स” लिखतीं हैं जो आपके ज्ञानवर्धन, मनोरंजन की गारंटी है। और हाँ मुझे भूलना नहीं चाहिए स्टूपिड ईविल बास्टर्ड को, इसको पढ़ना ना भूलें।
निरंतरः क्या आप डबल्यू ब्लॉगर जैसे औज़ार प्रयोग करते हैं? कौन सा न्यूज़रीडर आप प्रयोग करते हैं?
अतानुः मेरे ब्लॉग के लिए मूवेबल टाईप का प्रयोग करता हूँ पर किसी न्यूज़रीडर का नहीं।
निरंतरः ज़िंदगी का ब्लॉगिंग में हस्तक्षेप कैसा होता है? क्या वाकई आपकी कोई ज़िंदगी है?
अतानुः मुझे शायद इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहिए, पर चुँकि अपने ब्लॉग में भी इस बात की परवाह नहीं करता जवाब देने में कोई हर्ज़ भी नहीं। हाँ, मानता हूँ कि अब कोई ज़िंदगी नहीं रही, डेढ़ साल पूर्व मुम्बई आने से पहले ज़िंदगी हुआ करती थी।
निरंतरः क्या आपको लगता है कि भारतीय ब्लॉग कहीं कुछ बदल पायेंगे, खास तौर पर अपने देश में?
अतानुः ब्लॉग से भारत का परिवर्तन? मज़ाक कर रहे हो? भारत को कोई बदल नहीं सकता और कम से कम इन मुठ्ठी भर बेवकुफ़ाना चिट्ठों से, जिनके लेखकों को जिंदगी जीने की और जिनके पाठकों को घुमक्कड़ी की सख्त दरकार है, उम्मीद करना बेमानी है।
मज़ाक कर रहा था! ब्लॉग्स वैकल्पिक विचारों को आम चर्चा के मंच पर ला खड़ा करते हैं। असल में, ब्लॉग स्वयं आम जनता को आम चर्चा तक ले आती है। मुख्य धारा का मीडिया संकुचित और व्यभिचारी रूप गढ़ सकता है। ब्लॉग विचारों कि विविधता, जिसकी खासी ज़रूरत है, उत्पन्न करते हैं।
निरंतरः भारतीय ब्लॉग से आपका क्या तात्पर्य होता है?
अतानुः चुंकि साईबर स्पेस की बात करते वक्त दूरी का कोई अर्थ नहीं होता, भारतीय ब्लॉग का मतलब होना चाहिए ऐसा ब्लॉग जिसका भारत से संबंधित मुद्दों पर विशेष ज़ोर हो, भले ही लेखक कोई भी हो।
निरंतरः अपने बारे में कुछ और बताना चाहेंगे?
अतानुः मैं इस भौतिक संसार में रहने वाला बस एक साधारण सा इंसान हूँ जो ज्यादा लोगों को कष्ट पहुँचाए बिना जीवन जी रहा है और यह सोच रहा है कि अंततः परिणाम कैसा होगा। यह मेरा तीसरा पेशा है। पहले इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित किया गया पर उस का अमल नहीं किया। फिर कंप्यूटर विज्ञान का रूख किया पर वो भी छोड़ दिया क्योंकि कंप्यूटर मुझे कृत्रिम मूर्ख प्रतीत होते थे जबकि मुझे नैसर्गिक मूर्खता ज्यादा लुभावनी लगती रही है। तो मैंने अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की क्योंकि अर्थशास्त्र यह बता सकता है कि लोग इतनी मूर्खता से क्यों पेश आते हैं। फिलहाल मेरा वास्ता है ऐसे काम से जिसमें यह पता लगाया जा रहा है कि लोगों की नैसर्गिक मूर्खता पर प्रतिक्रिया कैसे की जाए। मैं ऐसी शैक्षणिक प्रणाली विकसित करने में लगा हूँ जिससे लोग बड़े होकर दरवाज़े के कुँदे जैसे मूर्ख न बन कर स्मार्ट बनें।
निरंतरः भारत के वर्तमान आर्थिक परिदृश्य का आप कैसा आकलन करते हैं?
अतानुः भारत की अर्थव्यवस्था विशाल और जटिल है। आप भारत को विभिन्न तरीकों से विभाजित कर सकते हैं और इन बहुसंख्य विभाजनों में भी हर टुकड़ा, जो आपेक्षिक रूप से भले ही नगण्य हो, पूर्ण रूप में विशाल हो सकता है। जिस भी विभाजन पर केंद्र बिंदु हो आप को एक नयी कहानी मिलेगी।
उदाहरण के लिए बीपीओ जैसी सूचना प्रौद्योगिकी इनेबल्ड सेवाएँ को लें। 10 लाख भारतीय इस क्षेत्र में कार्य करते हैं और हालात इससे बेहतर नहीं हो सकते शायद। पर ये भारत की जनसंख्या का केवल 0.1 प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी इनेबल्ड सेवाओं का क्षेत्र तेजी से विकास और प्रगमन कर रहा है। संपूर्ण शहरी अंचल भी तेज़ी से बढ़ रहा है। पर ये भी भारत का लगभग 20 प्रतिशत ही हैं। शेष 70 प्रतिशत भारत का क्या जो ग्रामीण भारत है? वहाँ हालात इतने अच्छे नहीं हैं। भारत के भविष्य के लिए सबसे ज़रूरी सवाल हैं कि ग्रामीण भारत के सामने कौन सी अत्यावश्यक तथा महत्वपूर्ण समस्याएँ हैं और उनका निराकरण कैसे हो सकता है।
कुल मिला कर मैं भारत के भविष्य के विषय में आशावादी हूँ पर मैं सावधान भी हूँ। इस आशावादिता पर संभल कर कदम रखने का कारण इस प्रत्यक्षीकरण पर आधारित है कि नौकरशाही और राजनीति जीती जा रही बाजी भी हरा सकते हैं, जैसा वे पहले प्रदर्शित भी कर चुके हैं।
इस मूल अंग्रेज़ी आलेख का हिन्दी रूपांतरण किया देबाशीष चक्रवर्ती ने
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