सुधि पाठकों ने लाल परी का मिलना कूल ड्यूड से फिलहाल टाल दिया। चलिये, हम तो हुकुम के गुलाम हैं, नहीं मिलाते लाल परी को केडी से। तड़पने दो उसे अभी। इंतज़ार का फल यहाँ तो खट्टा होगा कि मीठा ये केडी को नहीं पता। लेकिन ऐसा करते हैं कि लाल परी उर्फ अरु को ज़रा ऑफिस में उलझा देते हैं। केडी जायेगा स्लो बर्नर पर।
तो मेहरबानों, कद्रदानों, लालपरी और केडी की नोंकझोंक शमशीर के नोक पर चलेगी अभी। लेकिन कौन किसे तड़पायेगा, केडी लाल परी को या होगा सब इसका उलट, बतायें आप सब ही। तो सब्र कीजिये। आईये, इस बार की धमाकेदार एंट्री है खिर्के खडूस की (नेपथ्य में झन्नाटेदार संगीत कौन बजा गया भाई) और (ड्रम का ज़ोरदार नाद) केया (छन्न छन्न) कटारी की।
तो पेशे खिदमत है अरु की कहानी, आप सबकी रज़ामन्दी से, प्रत्यक्षा की ज़ुबानी।
(गतांक से जारी)
रात भर हमारी नायिका जल बिन मछली चरितार्थ करते हुये तडपती रही। दो बार उठकर पानी पिया और अंततः तकिये को सीने से लगाये जवानी के दिनों की रुमानी उपन्यास की प्रेम विरहणि नायिका का अवतार लेकर सो गई। सुबह, जैसा कि होना ही था, देर से नींद खुली। उस पर सोने में सुहागा वाले स्टाईल में गाड़ी का अगला टायर पंक्चर पाया गया। खैर, अरु को ऒफ़िस पहुँचना था सो पहुँची, अलबत्ता एक घंटे देर से। खूसट खिर्के यानी एम आर खिर्के यानि अरु का बौस दाँत पिजाये बैठा था। वैसे भी हमेशा ताक में रहता कि कब अरु को उसके फ़ाईल सहित रीसाईकिल बिन में डाल दे।
शुरु से ही खिर्के की अरु से नहीं पटी थी। उसे तो चाहिये थी केया कटारी की तरह तेजतर्रार, सुंदर, स्मार्ट सबऑर्डिनेट। ये भी एक तरह का स्टेट्स सिम्बल ही तो था। पर उसके भाग्य में बदी थी, निरीह, शाँत, दब्बू अरु। उसे पिस्सू की तरह मसल देने का कोई मौका हो और खिर्के चूक जाये? नामुमकिन। तो हाज़रीन वही हुआ जो पहले से ही खुदावंद ने अपने बही खाते में लिख डाला था। खिर्के ने अरु को वो झाड़ा, वो झाड़ा, कि गर्द चारों ओर गुबार बनकर फ़ैल गया। अरु रुआँसी सफ़ाई देती रही, "सर, दो रीजन से फ़िगर्स नहीं आये, मैंने तो कल तीन बार रिमांईड किया था "
खिर्के उवाचे,"मिज़ सरन, मुझे रीजन और फ़िगर्स से कोई मतलब नहीं। मुझे मीटिंग के पहले रिपोर्ट चाहिये।" खिर्के जब ज्यादा नाराज़ होता तो अत्याधिक शालीनता का जामा ओढने का असफ़ल नाटक करता। बड़ा पिटा हुआ अभिनेता था। लेकिन बॉस था। बगल के क्यूबिकल से केया कटारी बेहयाई से मुस्कुरा रही थी। केया कटारी, ऒफ़िस की सबसे खूबसूरत और तेजतर्रार महिला। गोरी, लंबी तन्वगी। अरु के अंदर डाह की एक लहर पेप्सी के गैस की तरह उठी और सर लहका कर शून्य में विलीन हो गई।
फ़ोन घुमाया रीजनल ऒफ़िस। आक्रामक मुद्रा अपनाने का असफ़ल प्रयास किया। सब ठीक था बस आवाज़ जरा लड़्खड़ा गई ,"मिस्टर….. आपके फ़िगर्स अब तक नहीं पहुँचे। आपने कल ही भेजने को कहा था।" मिस्टर वेस्टर्न रीजन ने शातिर और पुराने खिलाड़ी की तरह बल्ला संभाला, "कहाँ, मैडम। क्या बतायें कितना काम है यहाँ। कल ही जीएम साहब ने रिव्यू मीटिंग रख दी। अभी भी उसी में लगे हैं। देखते हैं शाम तक आपको फ़िगर्स भेज पायें, वरना कल सुबह, फ़र्स्ट हाफ़ में", बॉल छक्के के लिये उड़ गया।
अरु के सामने खिर्के खूसट नाच उठा। फ़िगर्स के बिना आज की मीटिंग में जो उसका साँबा डांस होगा उसका खामियाजा तो अरु को ही भुगतना पडेगा। "अरे, ऐसे कैसे चलेगा मिस्टर …. फ़िगर्स तो आज ही चाहिये बल्कि अभी। वेरी अरजेंट" वाक्य खत्म होते होते आवाज, एक पैसा दे दो बाबा, की भिखारियाना अंदाज़ ले चुकी थी। अरु के हाथ में कटोरा और बचे हुये दो रीजन्स से फ़िगर्स की भीख मांगते हुये झोली फ़ैलाये हुये दीन दुखियारी नायिका। सिर को दोनों हथेलियों में टिकाये, हताश निराश परेशान, दुख की साक्षात तस्वीर।
यहाँ अरु पर गाज़ गिरी जा रही थी और उधर केया अपने नैन कटारी का भरपूर इस्तेमाल करते हुये खिर्के के टेबल पर झुकी हुई थी। खिर्के के बत्तीस चमक रहे थें। खीसें अगर कुछ होती होंगी तो यही थीं, अरु ने जल कर सोचा। कॉफी मग के भाप के पार केया और खिर्के ने एक दूसरे को कोलगेटी मुस्कान के डेबिट क्रेडिट से कृतार्थ किया और बैलेंसशीट के ऐसेट ट्रांसफर की तरह केया के कुछ फाईल्स अरु के टेबल पर ट्रांसफर कर दिये। केया का सुबह का काम पूरा हो गया था। अपने केबिन में वापस आकर नाखूनों को दोबारा नेलपॉलिश से रंगते हुये ठंडी साँस भरते केया ने सोचा, उफ्फ थक गये। आखिर एक लडकी कितना काम करे। जूस का गिलास पैंट्री से ऑडर करते हुये केया के चेहरे पर आधे दिन का काम निपटा देने की थकन भरी सुकून थी।
और उधर केया? हाल बेहाल और क्या। एक हाथ फोन पर, दूसरा कीबोर्ड पर। सामने मॉनिटर पर अंक चींटियों की तरह कतार बाँधे अपनी मन मर्जी से तितरबितर हो रहे थे।
आँसू पोंछ रहे हैं क्या, पाठकों। अरे इतने नरम दिल होंगे तो काम कैसे चलेगा। रूमाल, टिशू वगैरह संभाल कर बैठें। ये तो किसी भी ऒफ़िस का बड़ा आम सूरते हाल है। पर आप भी कहेंगे कि हम तो मसाला मूवी चैट की कथा सुनने बैठे थे। ये रोती धोती नायिका की व्यथा कथा ही सुननी थी तो सास बहू सीरीयल कहाँ भागा जा रहा था। अरे, रुके न। कहाँ जा रहे हैं। चलिये, औन पौपुलर डिमांड कहानी को मोड़ते हैं मिर्ची, नीबू, चाट अओ चैट मसाला की ओर।
कहानी में फ़्लैशबैक …..केडी से दसवीं वार्ता।
रात की भीनी चाँदनी रौशनी। किसका दिल न मदहोश हो जाये। अरु के दिल में भी अरमान मचल रहे हैं। ऊँगलियाँ की बोर्ड पर, प्यानो की कीज़ पर हो जैसे। खिर्के से आज बड़ी झाड़ खाई थी। मूड कुछ उदासीन था। इस मूड को ठीक करने का बस एक ही सहारा था।
"ओये बबली", के डी ही था।
"हाय हैडसम"
"क्या किया आज?"
"ऐश"
"कैसे"
"अपना वही पुराना तरीका", अरु इठलाई
"क्या दिल तोड़ने का?"
"हुम्म"
"बड़े जालिम हैं जनाब", केडी पर कभी कभी नवाब वाजिद अली शाह की रूह सवार हो जाती थी। अरु को कई बार घटिया शायरी को इरशाद इरशाद कहना पड़्ता।
अब इसका जवाब अरु क्या दे। सर खुजाया पर कोई शोख नखरीला जवाब सोच के दायरे में ही नहीं आया कि लपक ले।
"कहाँ चली गई मेरी परी? मैं यहाँ तुम कहाँ….", आर डी बर्मन की आत्मा कहीं आसपास मँडरा रही थी। अब केडी जल्दी तय करे कि चचा गालिब या पँचम दा।
"यहीं हूँ, तुम बताओ"
"क्या किया आज?"
"कुछ खास नहीं"
"फ़िर भी"
"क्यूरियोसिटी किल्स द कैट"
"बट अ कैट हैज़ नाईन लाईव्स"
"खिसियानी बिल्ली"
"अच्छा छोड़ो,एक शेर लिखा है,सुनोगी?"
"इरशाद", मतलब आज केडी कूल ड्यूड नहीं। आज लेट द म्यूजिक राक की बजाय मुकर्रर मुकर्रर चलने वाला है।
"ये दम क्यों है मेरा
बडा बेरहम सा"
दो बार केडी ने टाईप किया। अरु.. अब आगे भी बढ। पर टाईप किया,"वाह!"। यही तो मज़ा है चैट का। अगले को पता ही नहीं चलता। केडी बेचारा बेखबर, शेर की अगली पंक्ति टाईप करता गया।
"निकलते निकलते
बचा कुछ है कम सा
किश्तों में भी रह गया
कुछ असर सा
आँखें खुली रह गईं
इस भरम में
कि देखें तुम्हें भी दीदाये तर सा "
अब देखा जाय तो इतना बुरा भी नहीं था, फ़िर हमारी नायिका पूरे दिन के बाद आज अभी इतने खुल कर क्यो हँसी। औरतों के दिल की बात रब जाने। अरु अब तक कूल ड्यूड को चीकू चिकनाई या मुच्छड़ मुच्छन्दर का दो अलग जामा पहना कर ही देखती थी। आज कल्पना में शेरवानी और अचकन, हाथ में लाल गुलाब लिये इत्र की सुगंध बिखेरते हुये मियाँ ठंडी पोश अपनी जूतियाँ उतार कर मसनद पर लुढकते हुये नमूदार हुये। और नेपथ्य में झीने दुपट्टे से अपना हसीं चेहरा छुपाये जो हसीना आदाब कर रही थी वो अरु बेगम ही तो थीं।
अब तक खिर्के खिड़की से, ग्यारह मंजिली इमारत से बाहर जा गिरा था। अरु के सामने मुगलिया सेट सजा था। कनीज़ सुराहियों से जाम छलका रही थीं। मियाँ, हर शेर पर झूम रहे थे।
चैट आगे भी चली। पर वो किस्सा फ़िर कभी, आखिरकार फ्लैशबैक का भी बंधा वक्त होता है।
अभी तो मीटिंग है, रिपोर्ट है। क्या करे अरु? केया छमकछल्लो नैनकटारी की मदद ले या फ़िर जतीन जानदार से बात करे। अब भई ये जतीन जानदार कौन? खिर्के के विभाग की तिगड़ी का तीसरा कोना। तीन कौन? अरु, केया और जतीन और कौन। खिर्के की लाडली केया, पहले नंबर पर, जतीन सो सो जतीन दूसरे नंबर पर और अरु बेचारी अरु हमेशा की तरह लास्ट। अरु के दिमाग में शाम का द्वंद भी धमाल मचा रहा है, बकायदा बुलफ़ाइइट, लाल कपड़े से बिफ़रे सांड की प्रचंड धमाचौकडी। (क्रमशः)
पाठकों, कथा विमान के असली पायलट तो आप हैं।
तो क्या केया से मदद ले अरु ?
जतीन कैसा हो मददगार टाईप या ऒफ़िस रोमियो
खिर्के का खाका? हैडसम रिचर्ड गेयर या प्रेम चोपड़ा टाईप खलनायक?
केया और अरु दोस्त? या फ़िर डाह का खेल ज्यादा रसीला?
अगले भाग में धमाकेदार एंट्री, नैना नमकीन की या फ़िर छाया छमकछल्लो की या फ़िर राजू रोमियो की, कि बग्गा बाबा, द युनीवर्सल बाबा की। आप बतायें किन दो को।
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