पहले माह की बड़ी खबरें…
सिक्स अपार्ट और अडोब का मेल, कुछ तो खास है!
समाचार है कि चिट्ठाकारी सॉफ्टवेयर और सेवाएँ देने वाले सिक्स अपार्ट और अडोब ने ऐसे यन्त्र बनाने के लिए सहयोग किया है, जिस से डिज़ाइनर सीधे गोलाइव के डिज़ाइन परिवेश से मूवेबल टाइप और टाइपपैड के अभिकल्प निर्मित और परिवर्तित कर सकते हैं। गोलाइव में ऐसे औज़ार ड़ाल दिए गए हैं जिन से डिज़ाइनर मूवेबल टाइप और टाइपपैड के अभिकल्प निर्मित कर सकते हैं, ताकि जानदार और आकर्षक चिट्ठे और जालपृष्ठ चटपट बनाये जा सकें। इस से जटिल चिट्ठे बनाने में लगने वाली मेहनत और पेचीदगी कम हो जाएगी। और तो और, इन औज़ारों से मोब्लॉगिंग यानी मोबाइल फोन के ज़रिए चिट्ठे पर लिखना या चित्र भेजना भी संभव हो पायेगा। भई वाह!
वर्डप्रेस ने की सर्च इंजनों में हेरा फेरी?
ख़बर है कि एक चिट्ठाकार ने लोगों के चहेते ब्लॉगिंग सॉफ्टवेयर निर्माता वर्डप्रेस को खोज इंजनों को स्पैम भेजते रंगे हाथों पकड़ा। उन्होंने कथित रूप से लगभग 1,20,000 छोटे जालपृष्ठ बनाए जिनमें “cialis”, “credit” जैसे पैसा बनाने वाले की-वर्ड ठूँस दिए और वर्डप्रेस के मुख्य पृष्ठ पर उन पृष्ठों की अदृश्य कड़ियाँ डालीं गयीं। इलज़ाम है कि फरवरी से मैट मुलेनवेग चुपचाप ऐसे लेखों का आतिथ्य कर रहे थे जो ख़ास तौर पर गूगल के ऍडवर्ड्स कार्यक्रम में धालमेल करने के लिए बनाए गए।
सवाल है कि वर्डप्रेस ही क्यों? वर्डप्रेस के जालपृष्ठ की गूगल पेज रैंक 8/10 है, खासकर इसलिए कि वर्डप्रेस द्वारा संचालित हर चिट्ठे पर वर्डप्रेस के जालपृष्ठ की कड़ी पहले से लगी होती है। इस ऊँची पेज रैंक से गूगल के खोज परिणामों में उन का दर्जा बढ़ जाता है, जिस से विषय-सम्बन्धित गूगल विज्ञापन बड़े लाभप्रद हो जाते हैं। इस से वर्डप्रेस विज्ञापनदाताओं के लिए खासा आकर्षक हो जाता है।
कुछ रोचक प्रश्न उभरते हैं इस से। पहला, क्या मुक्त सूत्री परिकल्पों के संयोजकों को यह बताना चाहिए कि वह पैसा कैसे बनाते हैं? दूसरा, क्या मुक्त सूत्री परिकल्पों के लिए इस तरह खोज यन्त्रों को छल कर पैसा बनाना नीतिसंगत है? आप भी सोचें और बतायें हमें।
गूगल का नया प्रयोगः जीमेल में आर.ऍस.ऍस पठन कार्यशीलता
ब्लॉगर, जिस का गूगल ने 2004 में अधिग्रहण किया था, के सूत्रधार इवान विलियम्ज़ का कहना है कि गूगल जी-मेल (गूगल मेल) में आर.ऍस.ऍस फीड तकनीक के साथ प्रयोग कर रहा है। नतीजा आर.ऍस.ऍस रीडर बाज़ार में ब्लॉगजगत के चहेते ब्लॉगलाइन्स के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है, अब जिस का मालिक गूगल का प्रतिस्पर्धी आस्क जीव्स है। इस समय योजना लग रही है जीमेल के ऊपर आर.ऍस.ऍस देने की, साथ में ऍडसेन्स वाले विज्ञापन। दिलचस्प बात है कि गूगल को फीडरीडरों में व्यवसाय दिख रहा है। इस रफ्तार से तो लगता है वाकई गूगल किसी दिन स्वास्थ्य वर्धक पेय भी बेचेगा।
विकीपीडिया को मिला याहू का सहारा
याहू योजना बना रहा है याहू-खोज में ऐसी कारीगरी जोड़ने की जिससे लोगों को सहकारी ज्ञानकोष विकीपीडिया के आलेखों तक पहुँचने के शार्टकट मिलेंगे। विकीपीडिया की कड़ियाँ खोज परिणामों से ऊपर दिखाई जाएँगी। याहू और विकीपीडिया को जन्म देने वाली कंपनी विकीमीडिया फाउन्डेशन में ऐसा करार हुआ लगता है। इन पंक्तियों के आप तक पहुँचने तक संभवतः यह सुविधा अमरीका और कुछ युरोपीय, एशियाई और दक्षिण अमरीकी व्यवसाय-क्षेत्रों में जोड़ दी गई होगी। इस के अतिरिक्त याहू विकीपीडिया को हार्डवेयर और अन्य साज़ सामान भी उपलब्ध कराएगा। विकीपीडिया का यह अन्तर्जाल ज्ञानकोष विकी तकनीक पर आधारित है जिस की मदद से कई लोग एक साथ एक ही परिकल्प पर काम कर सकते हैं। यानी, कोई भी विकीपीडिया में कुछ जोड़ सकता है या उस का सम्पादन कर सकता है। भई अच्छी बात है, हो सकता है कि हिन्दी विकीपीडिया के भी भाग फिरें कभी।
चीनी चिट्ठों का दमन है जारी
ओपन नेट इनिश्येटिव द्वारा आज जारी एक नई रपट ने बताया है कि चीन में चिट्ठों पर रोकटोक और सेन्सरशिप बढ़ रही है। इस विस्तृत अध्ययन में पाया गया कि मुख्य चीनी ब्लॉग कंपनियाँ राजनैतिक दृष्टि से नाज़ुक शब्दों के आधार पर प्रविष्टियों को या तो संपादित करती हैं या उन को हटा ही देती हैं। इस रिपोर्ट में चीन में चिट्ठाकारी के हाल के इतिहास पर नज़र ड़ाली गई है और इन खबरों पर भी कि मार्च 2004 में सरकार ने तीन लोकप्रिय ब्लॉग कंपनियों को इसलिए बन्द कर दिया क्योंकि एक चिट्ठाकार ने तियानानमेन चौक घटना और सार्ज़ महामारी के बारे में एक विवादास्पद पत्र चिट्ठे पर ड़ाला था। बाद में तीनों कंपनियों को दोबारा खुलने की इजाज़त मिली पर उन्होंने चिट्ठों के मसौदे को नियन्त्रित करने की छलनियाँ लगा दीं। इस रिपोर्ट में गूगल के ब्लागस्पॉट डोमेन पर चलने वाले चिट्ठों पर भी खुली रोकटोक लगने की बात कही गई है। किस दुनिया में जी रहे हैं हम?
कुछ और खबरें…
विडियो ब्लॉग: आसार अच्छे ‘दिखते’ हैं
नब्बे के दशक के उत्तरार्ध से ही, जब से ब्लॉग का आगमन हुआ, विडियो ब्लाग (व्लॉग) की संभावनाएँ भी बनी हुई हैं। पर व्लॉगिंग आम प्रयोक्ता के लिए तभी व्यावहारिक बन पाई है जब तीव्र गति इंटरनेट कनेक्शनों में प्रगति हुई है और वाजिब दाम लेकर बड़े आकार की विडियो फाइलों का आतिथ्य करने के लिए इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाली कंपनियाँ तैयार हुई हैं। आलोचक जो मोबाइल विडियो को दुत्कारते हैं, सही कहते हैं कि कोई भी हाथ में यन्त्र लिए फिल्म या टीवी नहीं देखना चाहता। पर व्लाग, या किसी के परिवार की वीडियो फिल्म, या यात्रा वृतान्त, या अन्य छोटे विडियो, छोटे से पर्दे पर ठीक ठाक चल सकते हैं।
एक नई साइट videoblogging.com विडियो के नौसिखियों को सही औज़ारों और कार्यशीलताओं की ओर निर्देशित करती हैं। व्लाग होस्टिंग सेवाएँ पनप रही हैं, और कहा जा रहा है कि गूगल, याहू और अन्य कंपनियाँ व्लाग सेवाएँ उपलब्ध कराने की सोच रही हैं। सेलफोनों और आइपॉड जैसे अन्य हाथ वाले यन्त्रों पर फोटोग्राफी की भी धूम मची है।
चिट्ठाकार भी फैला रहे हाथ
सच में! बख्शीश का डिब्बा अन्तर्जाल तक पहुँच गया है, जहाँ पर लालच, सीमा लांघने और कर सम्बन्धित मुद्दों के चलते “वर्चुअल टिप जार” विवाद का विषय बन गए हैं। ऐसे चिट्ठाकारों के लिए जिन के चिट्ठों पर आवाजाही अच्छी है, नियमित पाठक आते हैं, या जिनमें भीख मांगने का हुनर हो, टिप जार का अर्थ है खासी आमदनी। कुछ पहले दर्जे के चिट्ठे तो हज़ारों डॉलर खींच लेते हैं साल भर में। सूज़ी मैड्रक के बख्शीश के डिब्बे से तो गाड़ी ही निकल आई। “मेरी कार ने जब दम तोड़ा तो मेरे पाठकों ने मुझे 1500 डॉलर भेज दिए”, बेनसालेम, पेन्सिलवेनिया की मैड्रक, जिन का गुर्राता चिट्ठा सबर्बन गोरिल्ला कहलाता है, चहक कर कहती हैं।
कई चिट्ठों पर टिप जारों के इलावा “इच्छा सूचियाँ” हैं — चिट्ठाकार की पसन्दीदा किताबों, खेलों, गानों, फिल्मों, वग़ैरा की, जिन्हें पाठक से भेजने की उम्मीद की जाती है। पर खनकती नकदी जैसी कोई चीज़ नहीं। पे-पाल एक ऐसी सेवा है, जिस के ज़रिए इंटरनेट के ज़रिए पैसे भेजे जा सकते हैं। कुछ लोग ब्लॉगर चेक, मनी ऑर्डर, यहाँ तक कि क्रेडिट कार्ड भी लेते हैं। तो जनाब क्या इरादा है आपका?
राजनैतिक चिट्ठे पढ़ते हैं अमरीकी वयस्क
एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इंटरनेट पर जाने वाले हर 5 अमरीकी वयस्कों में से 2 ने राजनैतिक चिट्ठे पढ़े हैं, और एक चौथाई से ज़्यादा लोग महीने में एक या ज़्यादा बार उन्हें पढ़ते हैं। वयस्क लोग राजनैतिक विशेषज्ञों और दलों की जाल पत्रिकाएँ पढ़ते तो हैं, पर टिप्पणियाँ काफी कम लोग लिखते हैं। मार्च में इंटरनेट पर जाने वाले 2630 वयस्कों पर हुए हैरिस इंटरैक्टिव सर्वे के अनुसार ऐसे चिट्ठों पर टिप्पणी करने वालों की संख्या 10 में से 1 से भी कम थी। जो वयस्क लोग राजनैतिक चिट्ठे पढ़ते हैं, उन में से 15 प्रतिशत लोगों ने कभी टिप्पणी लिखी थी। यह भी पता चला है कि स्नातक या स्नातकोत्तर डिग्रियों वाले लोगों की राजनैतिक चिट्ठा लिखने की संभावना उन लोगों से ज़्यादा है जो कम शिक्षित हैं, और पुरुषों की ऐसे चिट्ठे लिखने की संभावना महिलाओं की तुलना में अधिक है। और हमें लगता था कि औरतें जन्मजात राजनीतिज्ञ होती हैं!
क्या अमरीकी चिट्ठों को शक की नज़र से देखते हैं?
लो, और सुनो! वेब होस्टिंग कंपनी होस्टवे द्वारा किए एक और सर्वेक्षण से पता चला है कि लोग सामान्यतः चिट्ठों से ज़रा सावधान रहते हैं।
“नतीजे कुछ अन्तर्विरोधी हैं। उदाहरणतः 52% ने कहा कि चिट्ठाकारों को वही सुरक्षा दी जानी चाहिए जो पत्रकारों को मिलती है। पर साथ ही उस से अधिक संख्या में लोग मानते हैं कि ऐसे चिट्ठों पर कुछ सेंसरशिप होनी चाहिए। सर्वे किए गए लोगों में से ८०% ने बताया कि चिट्ठाकारों को लोगों की निजी सूचना नहीं प्रकाशित करनी चाहिए, पर जहाँ तक मशहूर हस्तियों और राजनीतिज्ञों का सवाल है, ऐसी आपत्तियाँ कम थीं।”
अमरीका में इस माह के प्रारंभ में यह घोषणा की गई है कि राजनैतिक चिट्ठाकारों को वही पत्रकारिता अधिकार और सुरक्षाएँ दी जाएँगी जो सीऍनऍन और रायटर्स जैसी कंपनियों को उपलब्ध हैं। क्या बात है! तो अमरीका में तो हमारे पौ बारह हैं।
और चलते चलते…
चिट्ठों का प्रयोग अब घोटालों के लिए भी
कर्मचारी इंटरनेट प्रबन्धन समाधान कंपनी वेबसेन्स ने चेतावनी दी है कि चिट्ठों का दरुपयोग हानिकारक कोड और कुंजी रिकार्ड करने वाले सॉफ्टवेयर वितरित करने के लिए लगातार बढ़ रहा है। वेबसेन्स की सुरक्षा प्रयोगशाला ने चिट्ठों द्वारा हानिकारक कोड को संचित रखने और वितरित करने के सैंकड़ों किस्सों का पता लगाया। यह रहस्योद्घाटन फरवरी में आई उन खबरों के बाद हुए हैं, जिन में गूगल की ब्लॉगर ब्लागस्पॉट सेवा पर हानिकारक कोड संचित होने की बात कही गई थी। वेबसेन्स के अनुसार चिट्ठे हैकरों के आकर्षक वाहन कई कारणों से बन सकते हैं – चिट्ठे काफी मात्रा में मुफ्त जगह देते हैं, प्रविष्टियाँ डालने के लिए कोई परिचय प्रमाण आदि नहीं माँगते और अधिकाँश ब्लाग कंपनियाँ संचित फाइलों के लिए वाइरस सुरक्षा नहीं उपलब्ध करातीं।
चिट्ठाकारों को एतराज़ नहीं विज्ञापनों से
जब इतने सर्वेक्षणों की बात कि तो यह भी पढ़ें। ब्लॉग विज्ञापन गुट ब्लॉगकिट्स के एक सर्वेक्षण ने पता लगाया है कि अधिकाँश चिट्ठाकार चिट्ठों पर विज्ञापनों को स्वीकार योग्य मानते हैं। लगभग 1000 चिट्ठाकारों में किए गए सर्वेक्षण में पता चला कि 71% सोचते हैं कि चिट्ठों पर विज्ञापन स्वीकार्य हैं। रोचक है कि इसके उलट 29% लोगों ने यह भी कहा कि चिट्ठों पर विज्ञापन उन को स्वीकार्य नहीं हैं। अत्यधिक आशावाद का ही चिह्न है कि 52% लोगों ने यह भी कहा कि वे सोचते हैं वे चिट्ठों द्वारा पूरी आजीविका चला सकते हैं।
राजनीतिज्ञ चिट्ठों द्वारा वोट माँग रहे हैं
जब चिट्ठाकार चिट्ठों से घोटालें कर रहे हैं और भिक्षा तक मांग रहे हैं तो राजनेता कैसे पीछे रहें? दक्षिण पश्चिम (इंगलैंड) में उम्मीदवारों के लिए चिट्ठे चुनावी शस्त्रागार का भाग बन गए हैं। वेबलॉग, यानी ब्लॉग, के द्वारा उम्मीदवार ऐसी दैनन्दिनी लिखते हैं जिसे सभी पढ़ सकते हैं, और जिस में वे अपने देनिक विचार और कार्यकलाप लिखते हैं ताकि लोग तत्काल उन्हें देख सकें। राजनीतिज्ञ कहते हैं कि इस से उन्हें अपने विचार लोगों तक तुरन्त पहुँचाने और उन की प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सहायता मिलती है। उन का यह भी कहना है कि इस से लोगों को राजनीतिज्ञों के वास्तविक जीवन की एक झलक मिलती है और वे मतदाताओं के लिए थोड़े और “मानुषिक” हो जाते हैं। लालू जी, अब आपके राजनैतिक करियर को जीवनदान मिल सकता है।
थक कर चूर न होने के रास्ते
डैरन रौज़ कहते हैं, चिट्ठाकारी लम्बे समय तक चलती रहे, यह निश्चित करने का एक अच्छा तरीका है बीच बीच में अवकाश लेना। ऐसा न करने से बोरियत हो सकती है और लेखन में अवरोध आ सकता है। अवकाश लेने के अतिरिक्त अन्य तरीके हैं अग्रिम प्रविष्टियाँ बनाना और समूह चिट्ठाकारी।
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