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रंतर हिन्दी चिट्ठाकारों के एक समूह का अभिनव प्रयोग है। यह पहली ऐसी पत्रिका है जो न केवल गैरपेशेवर प्रकाशकों द्वारा निकाली जाती है बल्कि पाठकों को प्रकाशित लेखों पर त्वरित टिप्पणी करने का मौका भी देती है। इस तरह ये सिर्फ ज़ीन नहीं, विश्व की प्रथम ब्लॉगज़ीन बन सकी।

चिट्ठाकारी, पेशेवर लेखन और पत्रकारिता का संगम

अधिकाँश ब्लॉगर चिट्ठाकारी से जुड़ते अपनी राय से संसार को अवगत कराने के लिये। सब विभिन्न विषयों पर लिखते हैं, पर अधिकाँशतः चिट्ठों में समाज से जुड़े मुद्दों पर रिपोर्टिंग न के बराबर ही होती है। चिट्ठाकार पेशेवर पत्रकार नहीं हैं, परंतु चिट्ठों ने रिपोर्टिंग को वह नया रुख दिया है कि मुख्यधारा की मीडिया (एम.एस.एम) को भी सिटिज़न जर्नलिज़्म जैसे शब्द की रचना करनी पड़ी और अपने कलेवर में इंटरेक्टिविटी के एलिमेंट को शुमार करना पड़ा। चिट्ठों और एम.एस.एम की तुलना होती रहती है, उनके मतभेद की भी बात होती है।

वर्ष 2005 की बात है। हिन्दी चिट्ठाजगत के कुछ समान राय वाले लोगों ने निरंतर की शुरुवात की। इसे ब्लॉगज़ीन पुकारा गया क्योंकि हर कथा पर पाठक त्वरित टिप्पणी कर सकता था। आधुनिक सी.एम.एस ने सामुदायिक भागीदारी के रास्ते खोल दिये। हम सभी ने जाल पर हिन्दी के बढ़ते प्रयोग को महसूस किया है और इसके उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त भी हैं। अगस्त 2005 में निरंतर का प्रकाशन 6 अंकों के उपरांत बंद करना पड़ा, मुख्य कारण था समयाभाव। 1 साल बाद अगस्त 2006 में इसका प्रकाशन दुबारा शुरु हुआ।

निरंतर के अनोखे प्रयोग

Lal Pariहिन्दी ब्लॉगमंडल के अन्य एक अनोखे प्रयोग बुनो कहानी में हमने कोलैबोरेशन यानि सहयोग की भावना को बल देने के लिये मल्टी आथर कहानियों को रचने का तरीका पेश किया, जिसमें कहानी लिखना कोई शुरु करता है और कोई अन्य इसे आगे लिखता है। लेखकों में कहानी के प्लॉट संबंधी कोई चर्चा नहीं होती और न यह तय होता है कि कहानी कितने भागों में लिखी जायेगी। शायद इसीलिये यह स्वतः प्रवर्तित कार्य मनोरंजक भी है और चुनौतीपूर्ण भी। इसमें मौजूद सस्पेंस और अप्रत्याशितता के तत्वों को भी नकारा नहीं जा सकता।

निरंतर के पुनर्वतार में हमने ऐसा ही अनोखा प्रयोग पुनः किया। यह प्रयास था विश्व की पहली इंटरैक्टिव हिन्दी कहानी का एक नया स्तंभ। हिन्दी ब्लॉगजगत की सशक्त हस्ताक्षर प्रत्यक्षा ने इसे शुरु करने का बीड़ा उठाया। लाल परी एक ऐसी ही कहानी है जिसके खुले सिरे पाठक पिरोते हैं। कहानी के हर भाग के अंत में लेखिका पाठकों का मत माँगतीं है कि अगले भाग में कहानी क्या मोड़ ले। यानि बहुमत जिस पक्ष होता है ऊंट उसी करवट बैठता है।

अपने पहले अवतार की तुलना में निरंतर के कलेवर में थोड़े बदलाव हैं। यह अब ज़्यादा गंभीर पत्रिका है। इसका उद्देश्य है भारत की पहली सामुदायिक पत्रिका बनना, विचार यह है कि हर कथा के बनने में और इसके प्रकाशनोपरांत भी पाठकों का योगदान साफ झलके। हर कथा अंर्तजाल के हिन्दी पाठकों के कलेक्टिव विज़डम का निचोड़ हो, निरंतर की राय सिर्फ इसके संपादक मंडल की नहीं वरन पाठकों की राय से भी बनें। इसके लिये निरंतर मित्र समूह की स्थापना की जा रही है, निरंतर मित्र की संकल्पना के बारे में और जानकारी इस लेख में आगे दी गई है।

निरंतर के हर अंक में प्रकाशकों का प्रयास होगा कि वैश्विक भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पहलुओं पर दृष्टिपात करें। खरी बात कहें, जो किताबी नहीं वरन पाठकों और प्रकशकों की राय हो। भाषा जिसे हिन्दी के जानकार सराहें पर नौसिखियों को शब्दकोश न देखना पढ़े। अंदाज़ जो पारंपरिक और आधुनिक संप्रेषण का सुन्दर मेल हो।

निरंतर प्रकाशन दल

निरंतर की संरचना की खासियत केवल यह नहीं है कि सभी संपादक विश्व के विभिन्न कोने से साथ आ जुड़े हैं, बल्कि यह है कि विभिन्न विचारधाराओं के लोग साथ एक पत्रिका निकाल रहे हैं। निरंतर के मानद मुख्य संपादक अनूप शुक्ला लोकप्रिय चिट्ठाकार हैं। अगस्त 2006 से निरंतर की कोर टीम में आ जुड़े हैं डॉ सुनील दीपक, ईस्वामी, प्रत्यक्षा और आलोक कुमार। पुरानी टीम के मेम्बरान यानि रविशंकर श्रीवास्तव, रमण कौल, पंकज नरूला, शशि सिंह, अतुल अरोरा और देबाशीष चक्रवर्ती यथावत है।

निरंतर का लोगो

Logo
निरंतर का लोगो गुड़गाँव स्थित ग्राफिक व वेब डिजायनर तथा छायाकार भावना बाहरी ने बनाया है। लोगो में कोणार्क के सूर्य मंदिर से प्रभावित रथचक्र को दर्शाया गया है जो चिरस्थाई गति और नैरन्तर्य का प्रतीक है।

हमारा उद्देश्य था कि पत्रिका के नाम की सार्थकता के साथ ही और भारतीयता का सत्व भी अभिकल्पना में झलके। भावना ने वेब 2.0 की भावना के अनुरूप चक्र में ग्लास अफेक्ट का समावेश किया है। उर्जा व यौवन के तत्वों को सम्मिलित करने के लिये उन्होंने चमकीले पीले व नारंगी रंगों का प्रयोग किया है। कहना न होगा कि भावना का योगदान सराहनीय रहा।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

  • निरंतर के प्रकाशन में कौन लोग शामिल हैं?
    निरंतर के मुख्य संपादक हैं अनूप शुक्ला। पत्रिका का प्रकाशन व प्रबंध संपादन इसके संस्थापक देबाशीष चक्रवर्ती करते हैं। निरंतर के कोर संपादन टीम में शामिल हैं डॉ सुनील दीपक, रविशंकर श्रीवास्तव, रमण कौल, अतुल अरोरा, प्रत्यक्षा, शशि सिंह, ईस्वामी, पंकज नरूला और आलोक कुमार
  • मैं एक लेखक हूँ। निरंतर के लिये कैसे लिख सकता हूँ।
    निरंतर के लिये आपकी रचनाओं का स्वागत है। आप हमें रचनायें ईमेल द्वारा patrikaa [at] gmail [dot] com पर सीधे भेज सकते हैं। निरंतर के लेखकों का अपना एक पत्र समूह है “निरंतर मित्र“, आप उसकी सदस्यता भी अवश्य लें। विवरण उपर तथा साईडबार में दिया गया है।निरंतर पर लेखों से संबंधित कुछ अन्य जानकारी इस प्रकार है

    • लेख जाल पर सर्वथा अप्रकाशित होना चाहिये। आपकी रचना के बारे में हम आपको यथाशीघ्र सूचित करेंगे, सूचना मिलने तक कृपया अन्य जाल प्रकाशनों को लेख न भेजें। यदि किसी अन्य प्रकाशन को लेख भेजा गया है तो उनका निर्णय मिलने तक कृपया हमें रचना न भेजें। कारण यही है कि अंतर्जाल पर मसौदा खोजना आसान है अतः हम एक ही रचना अनेक स्थानों पर छापना उचित नहीं समझते।
    • निरंतर पर हम कोलेबोरेटिव लेखन को बढ़ावा देते हैं। अगर आप के पास किसी लेख का विचार है तो आप उसे साथी लेखकों या हमारे संपादक मंडल के साथ मिल कर लिख सकते हैं। निरंतर पर इस तरह के अनेक आलेख प्रकाशित हुये हैं, मसलनः झरिया की भूमिगत आग, रियल एस्टेट, वेबारू तथा एड्स पर आमुख कथायें
    • अपनी ब्लॉग पोस्ट प्रकाशन हेतु न भेजें।
    • निरंतर पर प्रकाशित आपकी रचना आप केवल अपने ब्लॉग या जालघर पर एक माह बाद छाप सकते हैं, हालांकि किसी प्रिंट प्रकाशन पर रचनायें प्रकाशित होने पर हमें कोई आपत्ति नहीं है।
    • लेख यूनिकोड में हों तो बेहतर, फाँट परिवर्तन संभव है पर इसमें समय ज़ाया होता है और परिवर्तन के बात वर्तनी की तकनीकी अशुद्धियों को सुधारने का काम अक्सर करना ही पड़ता।
    • अनुवाद, पुस्तकांश के साथ मूल लेखक की अनुमति संलग्न करना ज़रूरी है।
    • प्रकाशन पर कोई पारिश्रमिक देने में हम असमर्थ हैं, हालांकि इस हेतु हम सतत प्रयासरत हैं।
  • मैं एक उत्पाद/निर्माता प्रकाशक हूँ। क्या आप मेरे उत्पाद/प्रकाशन की समीक्षा प्रकाशित करेंगे?अगर आपका उत्पाद/प्रकाशन हमें जंचे तो ज़रूर। निरंतर का झुकाव तकनीकी उत्पादों पर स्वाभाविक रूप से ज़्यादा है पर हम किसी भी सार्थक
    उत्पाद/प्रकाशन की समीक्षा करने को उत्सुक रहेंगे। अपने उत्पाद/प्रकाशन की जानकारी के साथ हमसे संपर्क करें।
  • क्या आप मेरे उत्पाद/प्रकाशन की “फेवरेवल” समीक्षा या एडवर्टोरियल प्रकाशित करेंगे?हम किसी उत्पाद की खामख्वाह तारीफ या निंदा दोनों से ही बचना चाहेंगे। यदि आपकी समीक्षा rational है और संपादकीय दल उससे इतफ्फाक़ रखें तो हम ऐसी समीक्षा प्रकाशन हेतु विचाराधीन रख सकते हैं। पर ऐसी स्थिति में भी हम अपनी समीक्षा की प्रक्रिया ज़रूर दोहरायेंगे।
  • मैं एक प्रिंट पत्रिका निकालता हूँ। क्या मैं निरंतर के लेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित कर सकता हूँ?
    जी हाँ! निरंतर के लेख क्रियेटिव कॉमंस लाइसेंस के तहत जारी होते हैं। आप रचना अपनी पत्रिका में छाप सकते हैं, इसके लिये आप हमसे लिखित पूर्वानुमति लें। प्रकाशित लेख के साथ लेखक का नाम, परिचय, निरंतर के जालस्थल का पता तथा लेख का पर्मालिंक यानि स्थाई कड़ी देना अनिवार्य है। यदि आपके प्रकाशन में पारिश्रमिक देने की व्यवस्था है तो हम अनुरोध करेंगे कि हमें लेख का पारिश्रमिक भी अवश्य प्रदान करें जिसे हम मूल लेखक या अनुवादक तक पहुंचा सकें। निरंतर को समर्थन देने का यह यह श्रेष्ठ तरीका होगा।
  • क्या मैं निरंतर के लेख अपने ब्लॉग या वेब पत्रिका में पुर्नप्रकाशित कर सकता हूँ?
    चुंकि निरंतर भी एक जाल पत्रिका है अतः हम केवल मूल लेखक को ही लेख या रचना उनके अपने ब्लॉग, जालधर में प्रकाशन की अनुमति देते हैं। पर आप निरंतर के लेख की चर्चा या समीक्षा अपने ब्लॉग या साईट पर कर सकते हैं और लेख का 100 शब्दों का अंश प्रकाशित कर सकते हैं। आपकी प्रविष्टि या विवरण में निरंतर पर लेख का पर्मालिंक यानि स्थाई कड़ी देना अनिवार्य है। बिना अनुमति निरंतर के लेख अपने ब्लॉग, साईट या अन्य किसी प्रिंट प्रकाशन में करना गलत है।
  • निरंतर के प्रकाशन पर कितना खर्च आता है? डोमेन व होस्टिंग का कुल सालाना खर्च लगभग 1500/- रुपये है। इसके अलावा फोन तथा इंटरनेट खर्चे भी हैं जिनका सही अनुमान लगाना मुश्किल है।