EG-Series: अगस्त 2005
जल में घुली राजनीति
पानी का असमान वितरण, बांधों के लिये विस्थापितों को अपर्याप्त मुआवज़ा, आर्थिक रूप से संपन्न और विपन्न उपभोक्ताओं में भेदभाव। यह भारत में जल से जुड़ी आम बातें हैं। पत्रकार दिलीप डिसूजा इस पर गौर कर रहें हैं और सुझाव दे रहें हैं कि राजनीति के द्वारा ही स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है।
जनता द्वारा, जन हित हेतु : विश्व भर में जल की रक्षा
दुनिया भर में ऐसे लोगों के बीच की खाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिनके पास पानी पर्याप्त है और जो पानी को तरस रहे हैं। जल की उपलब्धता बड़ी समस्या है यह तो सभी मानते है पर इस से जुड़ी समस्याओं के हल पर आपसी सहमती और समन्वय न के बराबर है। प्रकृति की नेमत जल जो दरअसल एक मानवाधिकार होना चाहिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कमाई का ज़रिया बन गया है। प्रस्तुत आलेख में अमरीका स्थित “पब्लिक सिटिज़न्स वॉटर फॉर ऑल” नामक अभियान की निर्देशिका वेनोना हॉटर कह रही हैं कि पानी जैसी मूल सेवाओं में निजी निवेशक को नहीं वरन् नागरिकों की सीधी भागीदारी को बढ़ावा मिलना चाहिए।