Author: देबाशीष चक्रवर्ती
आखिर ब्लॉग किस चिड़िया का नाम है?
जब सेंकड़ों मस्तिष्क साथ काम करें तो जेम्स सुरोविकी के शब्दों में, "भीड़ चतुर हो जाती है"। गोया, इंसान को इंसान से मिलाने का जो काम धर्म को करना था वो टैग कर रहे हैं। निरंतर के संपादकीय में पढ़िये देबाशीष चक्रवर्ती और अतुल अरोरा का नज़रिया।
घसीटा या दीप
"उसका नाम दीप था। घसीटा या भूरा नहीं। विकास के नाम पर क्या इतना काफी नहीं? घसीटा से भी ज्यादा घसीटे गए अर्धकिशोर बालक का नाम एकदम साहित्यिक। पर उसे देख मैं यही सोचती, काश इसका नाम घसीटा होता, हो सकता है महादेवी जी की आत्मा जीवन्त हो उठती।" पढ़िये डॉ रति सक्सेना रचित मार्मिक संस्मरण।
साप्ताहिक अवकाश
खबर थी कि अब गृहिणियों को भी क़ानूनन सप्ताह में एक दिन छुट्टी मिलेगी। पूरे दिन की छुट्टी। पर यह क्या इसे सुनकर गृहिणियाँ तो सोच में पड़ गईं कि खुश हुआ जाए या दुःखी हुआ जाए। पढ़िये रविशंकर श्रीवास्तव की चुटीली रचना।
खो गए ओ घन कहाँ तुम
वातायन के काव्य प्रभाग में आस्वादन कीजिये दीपा जोशी की कविता "सूना जीवन" और अरूण कुलकर्णी रचित कविता "अभिप्सा" का।
पहले मुर्गी आयी या अन्डा
जितेन्द्र के बचपन के दोस्त सुक्खी बहुत ही सही आइटम हैं। उनकी जिन्दगी में लगातार ऐसी घटनायें होती रहती हैं जो दूसरों के लिये हास-परिहास का विषय बन जाती है। हास परिहास में पढ़िए सुने अनसुने लतीफ़े और रजनीश कपूर की नई कार्टून श्रृंखला "ये जो हैं जिंदगी"। साथ ही "शेर सवाशेर" में नोश फ़रमायें गुदगुदाते व्यंजल।