Category: वातायन

खिड़की

"कहने को कहते हैं कि लो खुलवा दी खिड़की तुम्हारे लिए। मैं जानती हूँ, इस बात में कितनी सच्चाई है। अगर एक बिटिया होती तो शायद यह खिड़की कभी न खुलती। बल्कि खुली हुई खिड़कियाँ भी बन्द हो जातीं।" वातायन में पढ़िये इला प्रसाद की संवेदनशील कथा खिड़की

सईदन बी – भाग 2

जब बड़े इंसानों ने धर्म की परिकल्पना की होगी तो शायद पावन उद्देश्य रहा होगा, मेरा कुनबा, एक ख्याल लोग, मेरा समूह साथ रहे तो रोजी रोटी अच्छी कटेगी। फिर लोगों ने धर्म से प्यार हटा कर स्वार्थ जोड़ दिया और परिदृश्य बदल गया। पढ़ें देबाशीष की कहानी का दूसरा और अन्तिम भाग।

जुलाई का डर

स्कूल ड्रेस, किताबें, कॉपियाँ, बस्ते, ट्यूशन की चिंता में हैरान होता पालक हो या अवर्षा, अति वर्षा, सूखा, या बाढ़ की चिंता में घुलता किसान। जुलाई का महीना हर किसी को डराता है यह चुटकी ले रहे हैं व्यंग्यकार रवि रतलामी।

पहचानी डगर का एक और पथप्रदर्शक

अँग्रेज़ी से सीधा-सपाट अनूदित पर उबाऊ नहीं। पढ़ें अरिंदम चौधरी की मूल अंग्रेजी पुस्तक “काउंट योर चिकंस बिफोर दे हैच” के प्रणीता सिंह द्वारा किये हिन्दी अनुवाद “खुदी को कर बुलंद इतना” की रविशंकर श्रीवास्तव द्वारा समीक्षा।

जीवन है मरीचिका

वातायन में पढ़िये प्रेम पीयुष, उमेश शर्मा और देबाशीष की कवितायें