Category: वातायन
घसीटा या दीप
"उसका नाम दीप था। घसीटा या भूरा नहीं। विकास के नाम पर क्या इतना काफी नहीं? घसीटा से भी ज्यादा घसीटे गए अर्धकिशोर बालक का नाम एकदम साहित्यिक। पर उसे देख मैं यही सोचती, काश इसका नाम घसीटा होता, हो सकता है महादेवी जी की आत्मा जीवन्त हो उठती।" पढ़िये डॉ रति सक्सेना रचित मार्मिक संस्मरण।
साप्ताहिक अवकाश
खबर थी कि अब गृहिणियों को भी क़ानूनन सप्ताह में एक दिन छुट्टी मिलेगी। पूरे दिन की छुट्टी। पर यह क्या इसे सुनकर गृहिणियाँ तो सोच में पड़ गईं कि खुश हुआ जाए या दुःखी हुआ जाए। पढ़िये रविशंकर श्रीवास्तव की चुटीली रचना।
खो गए ओ घन कहाँ तुम
वातायन के काव्य प्रभाग में आस्वादन कीजिये दीपा जोशी की कविता "सूना जीवन" और अरूण कुलकर्णी रचित कविता "अभिप्सा" का।
ग़ज़लें रंगारंग
शेरजंग गर्ग द्वारा संकलित व संपादित गज़लें रंगारंग ग़ज़लों के इंद्रधनुषी रंगों में पाठक को सराबोर करने का एक सार्थक प्रयास है, कहना है पुस्तक की समीक्षा कर रहे रवि रतलामी का।
अंगने की होली
"न जाने कितने त्यौहार चुपचाप खिसक जाते हैं कालनिर्णय रसोईघर की भीत पर टंगा-टंगा। सब त्योहारों के नाम कान में बुदबुदाता रहता है…मन मामा के आँगन में उस त्यौहार को मना आता है।" वातायन में पढ़िये डॉ रति सक्सेना रचित मार्मिक संस्मरण "अंगने की होली"।